ताकतवर शरीर के लिए आदिवासी खाते हैं ये सस्ती चीजें
ताकतवर शरीर के लिए आदिवासी खाते हैं ये सस्ती चीजें
अनियमित खानपान दिनचर्या व ज्यादा फास्ट फूड का सेवन आदि के कारण विकसित समाज के हम जैसे लोगों की औसत जीवन आयु 60 से 65 वर्ष है। वहीं आदिवासियों की औसत उम्र 80 से 85 वर्ष। आखिर विकसित और स्वस्थ कौन हुआ? हम या वो, जो आज भी आदिवासी कहलाते हैं। ज्यादा विकसित और पैसा कमाने की दौड़ में हमने अपने और अपने परिवार के लालन-पालन में पोषक तत्वों को कहीं खो दिया है। आहार के नाम पर कृत्रिम रंगों से रंगी सब्जियां और फास्ट फूड कल्चर हमारी सेहत की बर्बादी के लिए किसी अलार्म से कम नहीं है। यदि आप भी आदिवासियों की तरह स्वस्थ रहना चाहते हैं तो आइए जानते हैं कुछ ऐसी चीजों के बारे में जो आपको हमेशा स्वस्थ और ताकतवर बनाए रखेंगी।
1. कुंदरू के फल में कैरोटीन प्रचुरता से पाया जाता है, जो विटामिन ए का दूत कहलाता है। कुंदरू में कैरोटीन के अलावा प्रोटीन, फाइबर और कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण तत्व भी पाए जाते हैं। गुजरात के डांगी आदिवासियों के बीच कुंदरू की सब्जी बड़ी प्रचलित है। इन आदिवासियों के अनुसार इसकी अधकच्ची सब्जी लगातार कुछ दिनों तक खाने से आंखों से चश्मा तक उतर जाता है।
2. कुल्थी, डोमा और चौलाई जैसी सब्जियां खून में ब्लड प्लेटलेट्स को बढ़ाती हैं। इन चीजों के नियमित सेवन से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है।
3. मध्यप्रदेश पातालकोट के आदिवासी मुनगा/ सहजन की पत्तियों की चटनी तैयार कर खाने के साथ बड़े चाव से खाते हैं। साथ ही, मुनगे की फलियां दाल और सब्जियों में भी डालते हैं। मुनगे की पत्तियों और फलियों में विटामिन ए की प्रचुरता आधुनिक विज्ञान अच्छी तरह से साबित कर चुका है।
4. आंखों के लिए मुनगे की फलियों को बेहतरीन औषधि माना जाता है। कच्ची पत्ता गोभी आदिवासी बच्चों के लिए बहुत लाभदायक होती है। 8 से 10 महीने की उम्र के जिन बच्चों का वजन कम होता है, उन्हें आधा से एक कप मात्रा में पत्ता गोभी का रस पिलाया जाता है।
5. आदिवासी मुनगे की पत्तियों को बेसन के साथ मिलाकर पकौड़े भी बनाते हैं। इनके अनुसार मुनगे की चटनी या पकौड़े खाने से पेट के कृमि मृत होकर शौच से बाहर निकल आते हैं।
5. आदिवासी मुनगे की पत्तियों को बेसन के साथ मिलाकर पकौड़े भी बनाते हैं। इनके अनुसार मुनगे की चटनी या पकौड़े खाने से पेट के कृमि मृत होकर शौच से बाहर निकल आते हैं।
6. आदिवासियों के भोजन में हरी पत्तियों वाली सब्जियों की भरमार होती हैं। इनमें से अनेक भाजियां जैसे लाल-भाजी, कुल्थी, डोमा, पालक, मेथी और चौलाई आदि का व्यवसायीकरण भी हुआ है। आदिवासियों के अनुसार शरीर में ताकत और चंचलता बढ़ाने के लिए लाल भाजी बहुत ही महत्वपूर्ण है।
7. माना जाता है कि कुंदरू की सब्जी के निरंतर सेवन से बाल झड़ने का क्रम बंद हो जाता है। साथ ही, गंजेपन से भी बचा जा सकता है।
7. माना जाता है कि कुंदरू की सब्जी के निरंतर सेवन से बाल झड़ने का क्रम बंद हो जाता है। साथ ही, गंजेपन से भी बचा जा सकता है।
8. डांग में आदिवासी कोमल बांस की सब्जी बनाते हैं, जो स्फूर्तिदायक, खून साफ करने वाला, घाव सुखाने और मूत्रजनित रोगों के लिए
अच्छा आहार हैं। पातालकोट के आदिवासी मक्के के आटे से बनी चपातियों के साथ ही लालमिर्च की चटनी खाते हैं। उनका मानना है कि इससे शरीर को भरपूर ऊर्जा और ताकत मिलती है।
9. पातालकोट में महुआ के फूलों को सुखाकर पाउडर/ आटा तैयार किया जाता है। इससे चपाती बनाई जाती है। वैसे, आधुनिक शोधों के परिणामों को देखा जाए तो महुए के सूखे फूल मूत्रजनित रोगों के निवारण के लिए फायदेमंद हैं और ये टॉनिक की तरह भी काम करते हैं।
10. डांग गुजरात में आदिवासी अरबी के पत्तों (200 ग्राम) को उबाल कर उसका रस पीते हैं। थोड़ी काली मिर्च डालकर इस उबले रस का सेवन दिन में दो बार करते हैं। पत्तियों को कम तेल में हल्का पकाकर सब्जी के तौर पर भी खाया जाता है। माना जाता है कि हाईपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर के लिए ये बेहतर उपाय है।
11. घुईयां की पत्तियों से बने पकौड़ों के सेवन से आर्थरायटिस और अन्य जोड़ के रोगों में जबरदस्त फायदा होता है। डांग गुजरात के आदिवासी खाने में वहां का स्थानीय अनाज, जिसे रागी या नागली कहा जाता है, के पापड़ तैयार कर खाते हैं। विज्ञान भी मानता है कि इसमें बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है।
11. घुईयां की पत्तियों से बने पकौड़ों के सेवन से आर्थरायटिस और अन्य जोड़ के रोगों में जबरदस्त फायदा होता है। डांग गुजरात के आदिवासी खाने में वहां का स्थानीय अनाज, जिसे रागी या नागली कहा जाता है, के पापड़ तैयार कर खाते हैं। विज्ञान भी मानता है कि इसमें बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है।
12. पातालकोट जैसे दूरगामी आदिवासी अंचलों में प्रो-बायोटिक आहार पेजा दैनिक आहार के रूप में सदियों से प्रचलित है। पेजा एक ऐसा व्यंजन है जो चावल, छाछ, बारली, नींबू और कुटकी को मिलाकर बनाया जाता है। आदिवासी हर्बल जानकार इस आहार को कमजोरी, थकान और बुखार आने पर रोगियों को देते हैं।
13. पेजा वास्तव में एक किण्वित (फरमेंटेड) आहार है, जो बड़ा ही स्वादिष्ट होता हैं। लोग इसे उल्टी, दस्त, पेट दर्द और पेट से संबंधित अन्य बीमारियों के लिए रोगी को देते हैं। जो लोग लगातार एंटीबॉयोटिक लेते हैं और इन दवाओं के नकारात्मक असर से परेशान होते हैं, उनके लिए पेजा एक बेहतरीन औषधि है।
14. तुरई के छिलकों की चटनी तैयार कर आदिवासी बुखार से पीड़ित व्यक्ति को जरूर देते हैं। इनका मानना है कि इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
15. रोजाना खाने के साथ किसी न किसी रूप से टमाटर खाएं। आदिवासी मानते हैं कि टमाटर रेशों, कार्बोहाइड्रेट, पोटैशियम और लौह तत्वों से भरपूर होते हैं। टमाटर में वसा और सोडियम की मात्रा भी कम होती है। साथ ही, इसमें लाइकोपिन नामक प्रचलित एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता हैं।
15. रोजाना खाने के साथ किसी न किसी रूप से टमाटर खाएं। आदिवासी मानते हैं कि टमाटर रेशों, कार्बोहाइड्रेट, पोटैशियम और लौह तत्वों से भरपूर होते हैं। टमाटर में वसा और सोडियम की मात्रा भी कम होती है। साथ ही, इसमें लाइकोपिन नामक प्रचलित एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता हैं।