चश्मा हटाने के तरीके
चश्मा हटाने के तरीके
कॉन्टैक्ट लेंस
चश्मा हटाने के लिए कॉन्टैक्ट लेंस का ऑप्शन काफी पुराना है, जिसमें किसी सर्जरी की जरूरत नहीं होती। बेहद पतली प्लास्टिक के बने कॉन्टैक्ट लेंस आंख की पुतली पर मरीज खुद ही लगा लेता है और रात को सोते वक्त उन्हें उतार देता है। ये लेंस कर्वी होते हैं और आंख की पुतली पर आसानी से फिट हो जाते हैं। कितने नंबर का लेंस लगाना है, कैसे लगाना है और देखभाल कैसे करनी है, ये सब बातें डॉक्टर मरीज को समझा देते हैं। बाहर से देखकर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता कि आंखों में लेंस लगे हैं या नहीं।
कॉन्टैक्ट लेंस दो तरह के होते हैं - रिजिड और सॉफ्ट। जिस लेंस की जितनी ऑक्सिजन परमिएबिलिटी (अपने अंदर से ऑक्सिजन को पास होने देने की क्षमता) होगी, वह उतनी ही अच्छा होगा।
कॉन्टैक्ट लेंस के मामले में सबसे महत्वपूर्ण है इसकी देखभाल। इन्हें साफ, सूखा और इन्फेक्शन से बचा कर रखना जरूरी है। कभी बाहर की चीजें और कभी आंख के आंसुओं आदि की वजह से कॉन्टैक्ट लेंस पर कुछ जमा हो जाता है। ऐसे में लेंसों को पहनने से पहले और निकालने के बाद हाथ की हथेली पर रखकर उनके साथ दिए गए सल्यूशन से साफ करना जरूरी होता है। सल्यूशन नहीं है, तो लेंस को पानी आदि से साफ करने की कोशिश न करें। बिना सल्यूशन के लेंस खराब हो सकता है। सल्यूशन आपके पास होना ही चाहिए।
कॉन्टैक्ट लेंस लगाने के शुरुआती दिनों में थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन आदत पड़ जाने पर इनका पता भी नहीं चलता।
एक बार लेंस लेने के बाद डॉक्टर से रुटीन चेकअप कराते रहना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के मुताबिक इन लेंसों को बदलते भी रहना चाहिए।
जिन लोगों की आंखें ड्राई रहती हैं या ज्यादा सेंसिटिव हैं या फिर किसी तरह की कोई एलर्जी है, उन्हें कॉन्टैक्ट लेंस पहनने की सलाह नहीं दी जाती।
अगर साफ-सफाई का ध्यान रखा जाए और डॉक्टर के कहे मुताबिक लेंस का इस्तेमाल किया जाए तो कॉन्टैक्ट लेंसों का कोई रिस्क नहीं है।
स्विमिंग करते वक्त कॉन्टैक्ट लेंस नहीं लगाने चाहिए। मेकअप करते और उतारते वक्त कोशिश करें कि लेंस न पहने हों।
लेंस को हथेली पर रखकर सल्यूशन की मदद से रोजाना साफ करना जरूरी है। जब पहनें, तब भी साफ करें और जब निकालें, तब भी साफ करके ही रखें। अगर हर महीने लेंस बदल रहे हैं, तब भी रोजाना सफाई जरूरी है।
कुछ खास स्थितियों में ही डॉक्टर छोटे बच्चों को कॉन्टैक्ट लेंस बताते हैं, वरना जब तक बच्चे लेंस की देखभाल करने लायक न हो जाएं, तब तक उन्हें लेंस लगाने की सलाह नहीं दी जाती।
ऐसा कभी नहीं होता कि लेंस आंख में खो जाए या उससे आंख को कोई नुकसान हो। कई बार यह आंख में सही जगह से हट जाता है। ऐसे में आंख को बंद करें और धीरे-धीरे पुतली को हिलाएं। लेंस अपने आप अपनी जगह आ जाएगा।
कॉन्टैक्ट लेंस यूज करने वालों को अपने साथ चश्मा भी रखना चाहिए। आप जब चाहें, चश्मा लगा सकते हैं और जब चाहें, लेंस लगा सकते हैं।
सर्जरी
चश्मा हटाने के लिए आमतौर पर तीन-चार तरह के ऑपरेशन किए जाते हैं। कुछ साल पहले तक रेडियल किरटोटमी ऑपरेशन किया जाता था, लेकिन आजकल यह नहीं किया जाता। इससे ज्यादा लेटेस्ट तकनीक अब आ गई हैं। हम यहां चार तरह की सर्जरी की बात करेंगे। इन सभी में विजन 6/6 (परफेक्ट विजन) आ जाता है, लेकिन सबकी क्वॉलिटी अलग-अलग है। नंबर चाहे प्लस का हो या फिर माइनस का या फिर दोनों, सर्जरी के इन तरीकों से सभी तरह के चश्मे हटाए जा सकते हैं यानी मायोपिया और हाइपरोपिया दोनों ही स्थितियों को इन तरीकों से अच्छा किया जा सकता है।
कुछ में सर्जरी के बाद कुछ समस्याएं हो सकती हैं, तो कुछ एक निश्चित नंबर से ज्यादा का चश्मा हटाने में कामयाब नहीं हैं। ऐसे में डॉक्टर आंख की पूरी जांच करने के बाद ही यह सही सही-सही बता पाते हैं कि आपके लिए कौन-सा तरीका बेहतर है।
कौन करा सकता है सर्जरी
जिन लोगों की उम्र 18 साल से ज्यादा है और उनके चश्मे का नंबर कम-से-कम एक साल से बदला नहीं है, वे लेसिक सर्जरी करा सकते हैं।
अगर किसी शख्स की उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसका नंबर स्थायी नहीं हुआ है, तो उसकी सर्जरी नहीं की जाती। सर्जरी के लिए एक साल से नंबर का स्थायी होना जरूरी है।
जिन लोगों का कॉर्निया पतला है, उन्हें ऑपरेशन की सलाह आमतौर पर नहीं दी जाती।
गर्भवती महिलाओं का भी ऑपरेशन नहीं किया जाता।
कितनी तरह की सर्जरी
सिंपल लेसिक
सिंपल लेसिक सर्जरी को पहले यूज किया जाता था, लेकिन अब डॉक्टर इसका इस्तेमाल नहीं करते। वजह यह है कि ऑपरेशन के बाद इसमें काफी जटिलताएं होने की आशंका बनी रहती है, मसलन आंखें चुंधिया जाना आदि। हालांकि इस तरीके से ऑपरेशन करने के बाद चश्मा पूरी तरह हट जाता है और नजर क्लियर हो जाती है। जहां तक खर्च का सवाल है, तो इसमें दोनों आंखों के ऑपरेशन का खर्च करीब 20 हजार रुपये आता है।
सी-लेसिक
इसे कस्टमाइज्ड लेसिक भी कहा जाता है। चश्मा हटाने के लिए किए जानेवाले ज्यादातर ऑपरेशन आजकल इसी तकनीक से किए जा रहे हैं। सिंपल लेसिक कराने के बाद आनेवाली तमाम दिक्कतें इसमें नहीं होतीं। इसे रेडीमेड और टेलरमेड शर्ट के उदाहरण से समझ सकते हैं - मतलब सिंपल लेसिक अगर रेडीमेड शर्ट है तो सी-लेसिक टेलरमेड शर्ट है। सिंपल लेसिक में पहले से बने एक प्रोग्राम के जरिए आंख का ऑपरेशन किया जाता है, जबकि सी-लेसिक में आपकी आंख के साइज के हिसाब से पूरा प्रोग्राम बनाया जाता है। कहने का मतलब हुआ कि सी लेसिक में आंख विशेष के हिसाब से ऑपरेशन किया जाता है, इसलिए यह ज्यादा सटीक है। जहां तक ऑपरेशन के बाद की आनेवाली दिक्कतों की बात है तो सी-लेसिक में वे भी बेहद कम हो जाती हैं। यह सिंपल लेसिक के मुकाबले ज्यादा सेफ और बेहतर है। खर्च दोनों आंखों का लगभग 30 हजार रुपये आता है।
तरीका : जिस दिन ऑपरेशन किया जाता है, उस दिन मरीज को नॉर्मल रहने की सलाह दी जाती है। इस ऑपरेशन में दो से तीन मिनट का वक्त लगता है और उसी दिन मरीज घर जा सकता है। ऑपरेशन करने से पहले डॉक्टर आंख की पूरी जांच करते हैं और उसके बाद तय करते हैं कि ऑपरेशन किया जाना चाहिए या नहीं। ऑपरेशन शुरू होने से पहले आंख को एक आई-ड्रॉप की मदद से सुन्न (ऐनस्थीजिआ) किया जाता है। इसके बाद मरीज को कमर के बल लेटने को कहा जाता है और आंख पर पड़ रही एक टिमटिमाती लाइट को देखने को कहा जाता है। अब एक स्पेशल डिवाइस माइक्रोकिरेटोम की मदद से आंख के कॉनिर्या पर कट लगाया जाता है और आंख की झिल्ली को उठा दिया जाता है। इस झिल्ली का एक हिस्सा आंख से जुड़ा रहता है। अब पहले से तैयार एक कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए इस झिल्ली के नीचे लेजर बीम डाली जाती हैं। लेजर बीम कितनी देर के लिए डाली जाएगी, यह डॉक्टर पहले की गई आंख की जांच के आधार पर तय कर लेते हैं। लेजर बीम डल जाने के बाद झिल्ली को वापस कॉनिर्या पर लगा दिया जाता है और ऑपरेशन पूरा हो जाता है। यह झिल्ली एक-दो दिन में खुद ही कॉनिर्या के साथ जुड़ जाती है और आंख नॉर्मल हो जाती है। मरीज उसी दिन अपने घर जा सकता है। टांके या दर्द जैसी कोई शिकायत नहीं होती। एक या दो दिन के बाद मरीज अपने सामान्य कामकाज पर लौट सकता है। कुछ लोग ऑपरेशन के ठीक बाद रोशनी लौटने का अनुभव कर लेते हैं, लेकिन ज्यादातर में सही विजन आने में एक या दिन का समय लग जाता है।
बाद में भी रखरखाव जरूरी : ऑपरेशन के बाद दो से तीन दिन तक आराम करना होता है और उसके बाद मरीज नॉर्मल काम पर लौट सकता है। स्विमिंग, मेकअप आदि से कुछ हफ्ते का परहेज करना होगा। जो बदलाव कॉर्निया में किया गया है, वह स्थायी है इसलिए नंबर बढ़ने या चश्मा दोबारा लगने की भी कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन कुछ और वजहों मसलन डायबीटीज या उम्र बढ़ने के साथ चश्मा लग जाए, तो बात अलग है।
ब्लेड-फ्री लेसिक या आई-लेसिक
सर्जरी की मदद से चश्मा हटाने का यह लेटेस्ट तरीका है। सिंपल लेसिक और सी-लेसिक में कॉर्निया पर कट लगाने के लिए एक माइक्रोकिरेटोम नाम के डिवाइस का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ब्लेड-फ्री लेसिक में इस कट को भी लेसर की मदद से ही लगाया जाता है। बाकी सर्जरी का तरीका सी-लेसिक जैसा ही होता है। अगर पावर ज्यादा है, कॉर्निया बेहद पतला है, तो ब्लेड-फ्री लेसिक कराने की सलाह दी जाती है। वैसे, ऐसे लोगों को इसे ही कराना चाहिए, जिन्हें एकदम परफेक्ट विजन चाहिए मसलन स्पोर्ट्समैन, शूटर आदि। दोनों आंखों के ऑपरेशन का खर्च 85 हजार रुपये तक आ जाता है। आई-लेसिक सर्जरी में शुरुआत के दिनों में कुछ दिक्कतें हो सकती हैं, मसलन आंख के सफेद हिस्से पर लाल धब्बे, जो दो से तीन हफ्ते में खत्म हो जाते हैं। आंखों में थोड़ा सूखापन हो सकता है और कम रोशनी में देखने में कुछ दिक्कत हो सकती है। कुछ समय बाद ये दिक्कतें अपने आप दूर हो जाती हैं।
लेंस इंप्लांटेशन यानी ICL
अगर चश्मे का नंबर माइनस 12 से ज्यादा है और कॉर्निया इतना पतला है कि आई-लेसिक भी नहीं हो सकता है, तो डॉक्टर चश्मा हटाने के लिए लेंस इंप्लांटेशन तकनीक का यूज करते हैं। इसमें आंख के अंदर इंप्लांटेबल कॉन्टैक्ट लेंस (आईसीएल) लगा दिया जाता है। आईसीएल बेहद पतला, फोल्डेबल लेंस होता है, जिसे कॉनिर्या पर कट लगाकर आंख के अंदर डाला जाता है। जिस मिकेनिजम पर कॉन्टैक्ट लेंस काम करते हैं, यह लेंस भी उसी तरह काम करता है। फर्क बस इतना है कि इसे आंख में पुतली (आइरिस) के पीछे और आंख के नेचरल लेंस के आगे फिट कर दिया जाता है, जबकि कॉन्टैक्ट लेंस को पुतली के ऊपर लगाया जाता है। इसमें एक बार में एक ही आंख का ऑपरेशन किया जाता है। पूरी प्रक्रिया में लगते हैं 30 मिनट और दूसरी आंख का ऑपरेशन कम-से-कम एक हफ्ते के बाद किया जाता है। ऑपरेशन होने के बाद मरीज उसी दिन घर जा सकता है और दो-तीन दिन के बाद ही नॉर्मल रुटीन पर आ सकता है।
नजर बेहतर बनाने के दूसरे तरीके
होम्योपैथी
होम्योपैथी में आमतौर पर ऐसे दावे नहीं किए जाते कि इससे मायोपिया (दूर की नजर कमजोर होना) का नंबर हट सकता है, फिर भी अगर नंबर कम है और समय रहते दवाएं लेनी शुरू कर दी जाएं तो होम्योपैथिक दवाएं नजर को बेहतर बनाने और चश्मे के नंबर को कम करने या टिकाए रखने में बहुत कारगर हैं।
चश्मे का नंबर कम करने के लिए फाइसोस्टिगमा 6 ( Physostigma ) या रस टॉक्स 6 ( Rhus.Tox ) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेने लें।
कई बार आंखों की मसल्स कमजोर हो जाने की वजह से भी नजर कमजोर होती है। अगर ऐसी स्थिति है तो मरीज को जेलसीमियम 6 ( Gelsemium ) या बेलाडोना 6 ( Belladonna ) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेनी चाहिए।
अगर चोट आदि के बाद नजर कमजोर हुई हो तो आर्निका 6 ( Arnica ) या बेलिस 6 ( Belles) की चार-चार गोली दिन में तीन बार लेनी चाहिए।
नोट : चूंकि यह इलाज लंबा चलता है, इसलिए ये सभी दवाएं कम पोटेंसी की ही दी जानी चाहिए। वैसे कोई भी दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर कर लें।
आयुर्वेद
आयुर्वेद में भी मायोपिया के केस का चश्मा पूरी तरह हटाने के केस न के बराबर मिलते हैं, लेकिन आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आयुवेर्द में काफी कुछ है। इन दवाओं और नुस्खों के काफी अच्छे रिजल्ट भी देखने को मिले हैं।
खाने में दूध, आंवला, गाजर, पपीता, संतरा और अंकुरित अनाज जरूर शामिल करें।
मां बच्चे को अपना दूध अच्छी तरह पिलाती है तो बच्चे की नजर कमजोर होने के आसार कम हो जाते हैं।
खाना खाने के बाद आधा चम्मच भुनी सौंफ और मिश्री को चबाकर खाने से आंखों की परेशानियां नहीं होतीं।
आंखों की रोशनी बढ़ाने और आंखों की दूसरी दिक्कतों के लिए आयुवेर्द में दो दवाओं का यूज किया जाता है। ये हैं त्रिफला घृत और सप्तामृत लौह। इन दवाओं को सेवन वैद्य की सलाह से करें। ये दवाएं बचाव के तौर पर नहीं ली जातीं। बीमारी होने पर डॉक्टर की सलाह से ही इन्हें लेना चाहिए। चश्मे का नंबर लगातार बढ़ रहा है तो ये दवाएं कारगर हैं।
एक बूंद शहद में एक बूंद प्याज का रस मिलाकर हथेली पर रगड़ लें। सोने से पहले आंखों में काजल की तरह लगाएं।
खाने के बाद गीले हाथों को दोनों आंखों पर फेरें।
हफ्ते में दो दिन पैर के तलुए और सिर के बीचोबीच तेल की मालिश करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
एक चम्मच गाय का घी, आधा चम्मच शक्कर और दो काली मिर्च का चूर्ण मिला लें। इसे रोज सुबह खाली पेट लें। बच्चों की आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए बहुत बढि़या नुस्खा है।
योग
जिन लोगों की नजर कमजोर है, उन्हें नीचे दी गई यौगिक क्रियाओं को करना चाहिए। इन क्रियाओं को अगर सामान्य नजर वाले लोग भी नियमित करें तो उनकी आंखों की रोशनी कमजोर नहीं होगी। सलाह यही है कि कोई भी क्रिया योग विशेषज्ञ से सीखकर ही करनी चाहिए।
आंखों के यौगिक सूक्ष्म व्यायाम (नेत्र-शक्ति विकासक क्रियाएं) नियमित करें। इसमें क्रमश: आंखों को ऊपर-नीचे, दायें-बायें घुमाएं। इसके बाद दायें से बायें और बायें से दायें गोलाकार घुमाएं। हर क्रिया पांच से सात बार कर लें।
सूर्य नमस्कार 6 से 12 बार तक कर सकते हैं।
कपालभाति, भस्त्रिका, अनुलोम विलोम, भ्रामरी और उद्गीत प्राणायाम (ओम जाप) खासतौर से फायदा पहुंचाते हैं।
शुद्धि क्रियाओं में जलनेति, दुग्धनेति और घृतनेति कुछ दिन तक नियमित करने से नेत्र ज्योति में चमत्कारिक परिणाम मिलते हैं। इन क्रियाओं को किसी योग विशेषज्ञ से सीखकर ही करें।
ये योगासन आंखों की रोशनी बढ़ाते हैं : सर्वांगासन, मत्स्यासन, पश्चिमोत्तानासन, मंडूकासन, शशांकासन और सुप्तवज्रासन।
शुद्ध शहद या गुलाब अर्क आंखों में नियमित डालने से भी नेत्र ज्योति बढ़ती है।
त्रिफला को रात को भिगोकर रख दें। सुबह उसके जल को छान लें और उससे आंखें धोएं।
बच्चों को छह साल की उम्र के बाद योग करवाया जा सकता है, लेकिन आंखों की सूक्ष्म क्रियाएं छह साल से पहले भी शुरू कराई जा सकती हैं।