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प्रदर (Leucorrhoea)

प्रदर (Leucorrhoea)

परिचय

इस रोग में स्त्रियों के योनि के रास्ते सफेद पीला या दूध की तरह सफेद पदार्थ निकलता है। प्रदर रोग में शारीरिक निर्बलता तेजी से बढ़ती है। प्रदर रोग प्रमेह या सुजाक से बिल्कुल अलग होता है। यह रोग खाना-खाने में लापरवाही होने से, अधिक लेसदार, चिपचिपा और बदबूयुक्त सफेद प्रदर का स्राव होने लगता है। श्वेत प्रदर होने पर रोगी के दिमाग में शूल, शरीर के अन्य अंगो में दर्द, योनि में जलन और खुजली होती है। इससे स्त्रियों के कमर में ज्यादा दर्द होता है। प्रदर रोग के कारण अधिक बदबूयुक्त स्राव होता है। सहवास के दौरान भी स्त्रियों को परेशानी होती है। 

लक्षण

इस रोग में स्त्री के योनि से रूखा झागदार और थोड़ा रक्त स्रावित होता है। पित्तज प्रदर में पीला, नीला और लाल रंग का गर्म खून बहता है। कफज प्रदर में सफेद रंग का हल्का लालिमा लिए लिबलिबा स्राव निकलता है और त्रिदोषज प्रदर में शहद जैसा गर्म और बदबूदार साव निकलता है। इस रोग में कमजोरी, थकान, तन्द्रा, मूर्च्छा, जलन, आंखे झपकना, शरीर का पीलापन, प्रलाप करना आदि अनेक लक्षण उत्पन्न होते हैं। 

कारण

यह रोग अधिक खाने, अधिक चलने, अधिक बोझ उठाने, अजीर्ण, अधिक मैथुन, दिवा शयन (दिन में सोना), चोट, गर्भपात, शराब का सेवन, अधिक शोक आदि कारणों से हो जाता है। यह रोग मुख्य रूप से दो तरह का होता है- 1. सफेद प्रदर, 2. रक्त प्रदर। 

आयुर्वेद से इलाज

1. आंवला:आंवले के बीजों के चूर्ण को शर्करा और शहद के साथ सेवन करने से पीत (पीला स्राव) प्रदर में आराम मिलता है।3 ग्राम आंवले का चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।2. चना:भट्टी पर भूने हुए चने के छिलके उतारकर उसे कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। उसमें बराबर मात्रा में मिश्री का चूर्ण मिलाकर 6-6 ग्राम ठंडे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में रोग लाभ मिलता है।चने के सत्तू में मिश्री डालकर गाय के दूध के साथ सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।3. जीरा:लगभग 2 ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण, 1 ग्राम मिश्री का चूर्ण कडुए नीम की छाल के काढे़ में शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर में आराम मिलता है।जीरा और मिश्री को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को चावल के धोवन के साथ प्रयोग करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है।4. गूलर:गूलर के पके फल को छिलके सहित खाकर ऊपर से ताजे पानी को पीने से श्वेतप्रदर मिट जाता है।पके गूलर के फलों को सुखाकर कूट-पीस छानकर चूर्ण बना लें। फिर उसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी ढक्कनदार बर्तन में भरकर रख दें। इसे 6 ग्राम रोजाना सुबह-शाम दूध या पानी के साथ सेवन करने से रक्तप्रदर मिट जाता है।होमेओपेथी से इलाज

1. कैल्के-कार्ब- प्रदर का दूध की तरह सफेद रंग का आना, गर्भाशय में खुजली, जलन और दर्द होना आदि लक्षणों में कैल्के-कार्ब औषधि की 30 या 200 शक्ति लाभ करती है।

2. पल्सेटिला- पल्सेटिला औषधि ज्यादातर हर तरह के प्रदरों में लाभकारी मानी जाती है। सफेद रंग का गाढ़ा सा स्राव आना, मासिकस्राव के बाद यह स्राव तेज हो जाता है। इस स्राव के समय कभी दर्द होता है और कभी नहीं होता जैसे लक्षणों में पल्सेटिला औषधि की 6 शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।

3. सिपिया-   रोगी स्त्री को प्रदरस्राव के समय ऐसा दर्द होता है जैसे कि बच्चे को जन्म देते समय होता है, पेट में कब्ज हो जाती है, प्रदरस्राव थोड़ी मात्रा में, पीले या हरे रंग का, बदबूदार, पानी की तरह पतला आता है। इस तरह के लक्षणों में रोगी स्त्री को सिपिया औषधि की 6 या 200 शक्ति देना लाभकारी रहता है। 

नेचरोपैथी से इलाज
श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग होने का सबसे प्रमुख कारण पोषण की कमी, शरीर में खून की कमी होने या भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाने के कारण होता है।स्त्रियों के शरीर में विटामिन, कैल्शियम की कमी हो जाने के कारण भी श्वेतप्रदर का रोग हो सकता है।श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) रोग ज्यादा चिंता, थकान वाले काम करने के कारण भी हो सकता है।बहुत अधिक संभोग क्रिया करने के कारण भी श्वेतप्रदर रोग हो सकता है।जब स्त्रियां जल्दी-जल्दी मां बनती हैं या फिर बार-बार गर्भपात करवाती हैं तब भी यह रोग उन्हें हो सकता है।

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