loading...
loading...

प्रसव वेदना

प्रसव वेदना

परिचय:

प्रसव के समय बच्चा और जच्चा दोनों के लिए ही जटिलता बराबर रूप से होती है और चिकित्सक के लिए तो वह परीक्षा की घड़ी ही होती है। क्योंकि एक साथ दोनों जानों की रक्षा करना चिकित्सा के ऊपर ही होता है। अगर थोड़ी सी भी भूल हुई तो परेशानी चारों ओर से घेर लेती है। इसलिए चिकित्सक को चाहिए कि धैर्य के साथ अपनी कुशलता का परिचय दें या अन्य कुशल चिकित्सक के हाथ में कार्यभार सौंप दें, अस्पताल पहुंचा दें। यदि आसपास में यह सुविधा उपलब्ध न हो तो सावधानी से काम लें। जब तक गर्भाशय का मुंह खुला नहीं है। किसी भी ऐसी औषधि या टोटके का प्रयोग नही करें जो गर्भाशय पर क्रियाशील हो। गर्भाशय का मुंह खुल चुका हो रक्त पानी भी आ चुका हो पर बच्चा बाहर नहीं निकल रहा हो तो कुछ प्रयोग करें। ऐसा मानना ही कि शिशु को जन्म देने के बाद मां का दूसरा जन्म होता है, क्योंकि शिशु को पैदा करने में स्त्री को बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं। परन्तु आज के युग में ऐसी बहुत-सी दवायें तथा विधियां प्रचलित हैं, जो प्रसव (डिलिवरी) के दर्द को कम कर देती हैं।

भोजन तथा परहेज:
प्रसव (डिलीवरी) काल के दौरान सुपाच्य यानी आसानी से पच जाने वाले खाद्य-पदार्थ और पौष्टिक भोजन का ही सेवन करायें। सुबह को खुली हवा में टहलें और मन को निश्चिंत बनायें रखें।गर्म मसाले, मिर्च, मादक चीजे (नशीले पदार्थ), मांस, मंछली और अण्डे आदि का सेवन न करें और मैथुन यानी संभोग से दूर ही रहें।विभिन्न औषधियों से उपचार-

1. एरण्ड: एरण्ड का तेल गर्म दूध में 50 मिलीलीटर की मात्रा में मिलाकर पिलाने से अगर प्रसव में दर्द हो तो दर्द तेज होकर बंद हो जायेगा।

2. सोंठ: 10 ग्राम सोंठ का चूर्ण लगभग 500 मिलीलीटर दूध में अच्छी तरह पकाकर लेने से 15 मिनट के अन्दर-अन्दर बच्चा बाहर आ जायेगा।

3. केला:
केले की जड़ लाकर प्रसूता (बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री) के बांयी जांघ पर बांधे। इससे जल्द लाभ होगा।केले के ऊपर कपूर का चूर्ण डालकर खाने से प्रसव यानी डिलीवरी में दर्द नहीं होता है।4. पीपल लता: पीपल लता की गांठदार जड़ को पीपला मूल कहते हैं। कुछ पंसारी लोग पीपल लता की मोटी शाखाओं के टुकड़े कर बेचते हैं। अत: सावधानी से ही लें। प्रसव में ज्यादा देर होने पर पीपलामूल, ईश्वर मूल और हींग, पान के साथ खिलाने से प्रसव यानी डिलीवरी का दर्द बढ़कर प्रसव हो जाता है। प्रसव के तुरन्त बाद इसके बारीक चूर्ण का घोल देने से लाभ होता है।

5. लोध्र: लोध्र का लेप करने से प्रसूता (बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री) को प्रसव के समय हुए योनिक्षत पर लगाने से लाभ होता है।

6. जायफल: प्रसव यानी डिलीवरी के समय होने वाले कमर दर्द में जायफल घिसकर लेप करने से लाभ होता है।

7. पीपरामूल: प्रसव के समय पीपरा मूल, दालचीनी का चूर्ण लगभग 1.20 ग्राम में थोड़ी सी भांग के साथ प्रसूता (बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री) को पिलाने से प्रसव यानी बच्चे का जन्म आराम से होता है।

8. कलिहारी: सुख से प्रसव के लिए कलिहारी करी जड़ पीसकर नाभि के नीचे लगाने से लाभ होता है।

9. कपास: डिलीवरी के बाद में कपास की छाल का काढ़ा प्रसूता (बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री) को पिलाने से गर्भाशय जल्दी ही ठीक हो जाता है।

10. सरपत: प्रसूता (बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री) आसपास वातावरण साफ करने के लिये सरपत की धूनी जला कर धुंआ करें।

11. कंगुनी: प्रसव पीड़ा को कम करने के लिये कंगुनी के चूर्ण को दूध में बुझाकर, मिश्री को मिलाकर खाने से लाभ होता है। अगर पहले से ही लिया जाये तो दर्द कम रहता है।

12. काफी: शरीर में स्फूर्ति पैदा करने के लिए काफी के बीज भूनकर, अच्छी तरह से पीसकर पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।

13. अजाझाड़े: अजाझाड़े की जड़ कमर में बांधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है। 

Theme images by konradlew. Powered by Blogger.