loading...
loading...

महिलाओं के यौन रोग :-गर्भस्राव ,गर्भपात करना

गर्भस्राव करना

परिचय:

प्रसव के समय से पूर्व गर्भ का बाहर आ जाना गर्भस्राव या गर्भपात कहलाता है। चार महीने तक के गर्भ में मांस नहीं होता है अत: इस अवधि में गिरने वाले गर्भ का केवल रक्त (खून) गिरता है, जिसे ``गर्भस्राव (रक्तास्राव)`` कहते हैं। गर्भ ठहरने के पांचवे महीने से गर्भ का शरीर बनना आरम्भ हो जाता है, अत: इस अवधि में (पांचवे या छठे महीने) में गिरने वाले गर्भ को ``गर्भपात` कहते हैं। सातवें महीने में गर्भ का पूरा शरीर बन जाता है। अत: सातवे-आठवें महीने में होने वाले प्रसव को ``समय पूर्व का प्रसव`` तथा नवें और दसवें महीने में होने वाले प्रसव को उचित समय समय का `प्रसव` माना जाता है। गर्भ गिराना महापाप तथा कानूनन अपराध है परन्तु गर्भवती महिलाओं के जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आती हैं। जिसमें गर्भ को नष्ट किया जाना आवश्यक होता है जैसे गर्भवती के शरीर सम्बन्धी कारण, पारिवारिक या सामाजिक कारण आदि हैं अथवा गर्भ के कारण गर्भवती स्त्री के ही प्राणों पर संकट आने की आशंका हो तो उस स्थिति में गर्भ गिराना उचित माना जाता है। इस कार्य के लिए प्रयुक्त औषधियां-गर्भपातक या गर्भस्रावक औषधियां कहीं जाती हैं।

भोजन और परहेज :

पथ्य:
शालि चावल, मूंग, गोधूम (गेहूं) लाजा, सत्तू, कदली, आमलकी फल मज्जा, द्राक्षा, पका हुआ आम, घी, मक्खन, रसाला, शहद, शर्करा आदि गर्भपात के रोगियों के लिए लाभकारी होता है।मालिश करना, कोमल शैया, ठंडी जलवायु, चन्द्रप्रकाश, सुगंध द्रव्य धारण व पूर्ण स्नान करना चाहिए।अपथ्य:
अम्ल, कछु तिक्त, गुरू व अभिष्यिन्द द्रव्य, क्षार, विपरीत गुण वाले भोज्य पदार्थ, गर्भस्राव व गर्भपात की रोगियों के लिए हानिकारक होता है।कठोर बिस्तर, शोक, क्रोध, भय, उद्वेग, आधारणीय वेगों को रोकना, उपवास करना, रात्रि का भोजन, विरेचन, मांस, मदिरा, अरुचिकर भोजन, कुएं व गहरी नदियों में झांकना आदि अपथ्य होते हैं।विभिन्न औषधियों से उपचार-

1. चित्रक : चित्रक (चीता) की जड़ का गर्भाशय पर बहुत तीव्र संकोचक प्रभाव होता है। गर्भावस्था के किसी भी समय में इसका प्रयोग करने से लगभग 4 घंटे के अन्दर गर्भस्राव या गर्भपात हो जाता है। लेकिन गर्भ हमेशा मृत ही निकलता है। गर्भपात की दृष्टि से इसका चूर्ण आधा से दो ग्राम की मात्रा में आन्तरिक सेवन करायें और इसकी जड़ को गर्भाशय में प्रविष्ट कराकर प्रतीक्षा करें इससे गर्भपात हो जाएगा। गर्भपात होते ही सावधान रहे, अन्यथा गर्भाशय से अधिक रक्तस्राव हो सकता है।

2. बरगद :
लगभग 4 ग्राम छाया में सुखाया हुआ बरगद की छाल का चूर्ण दूध की लस्सी के साथ खाने से गर्भपात होगा।इसके दो कोमल पत्तों को 250 मिलीलीटर गाय के दूध में बराबर मिलाकर थोड़ा पानी डालकर पकायें, जब सिर्फ दूध ही रह जाये तो छानकर पी लेना चाहिए। इससे गर्भपात हो जाता है।3. अजमोदा: अजमोदा के फल का चूर्ण 1 से 4 ग्राम की मात्रा में 3-4 बार देने से मासिकस्राव प्रारम्भ हो जाता है। इसे गर्भावस्था में देने से गर्भ नष्ट हो जाता है।

4. कलौंजी (मंगरैला):
कलौंजी (मंगरैला) आधा से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से मासिक-धर्म शुरू हो जाता है। इससे गर्भपात होने की संभावना रहती है।कलौंजी (मंगरैला) और गाजर के बीज समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसे तीन ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम देना चाहिए इससे गर्भपात हो जाएगा।5. चनसूर: चनसूर 10 ग्राम को दूध में उबालकर गर्भपात कराने के लिए देते हैं।

6. बांस: बांस के पत्तों और कोमल गांठों का काढ़ा गुड़ में मिलाकर प्रतिदिन 4 खुराक, 40 ग्राम की मात्रा में दिये जाएं तो गर्भाशय का संकोचन और आर्तव (रज) शुद्धि होती है। यदि उपरोक्त काढे़ में कलौंजी, सोया और गाजर के बीज मिला दिये जाएं तो इसका काढ़ा गर्भपातक क्षमता वाली हो जाती है।

7. ईश्वरमूल: ईश्वरमूल (रूद्रजटा) के पंचांग का चूर्ण आधा ग्राम से 1.80 ग्राम पीपल की जड़ के साथ हींग मिलाकर पान में डालकर प्रतिदिन 2-3 मात्राएं देने सेवन कराया जाए (रस चूसना) तो इससे निश्चय ही गर्भपात हो जाता है।

8. अमरबेलः अमरबेल (आकाशबेल जो पीले धागे के समान सदृश बेर आदि वृक्षों पर जीवी रूप में पायी जाती है) का काढ़ा 80-90 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 3-4 बार सेवन करने से गर्भपात हो जाता है।

9. करेला: करेले की जड़ का काढ़ा सुबह-शाम 40 से 80 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन 3-4 बार सेवन करने से गर्भपात की संभावना रहती है।

10. मूली: मूली के बीज 1 से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से आर्तव (मासिकस्राव) जारी होता है। अत: गर्भपातक औषधियों के साथ जैसे गाजर के बीज के चूर्ण के साथ या क्वाथ (काढ़ा) में इसे भी साथ-साथ दिया जा सकता है

Theme images by konradlew. Powered by Blogger.