नष्टार्तव (मासिक-धर्म `माहवारी` बंद हो जाना)
नष्टार्तव (मासिक-धर्म `माहवारी` बंद हो जाना)
परिचय:
रजोनिवृत्ति काल (समय) से पहले ही मासिक धर्म का रुकना नष्टार्तव (मासिक धर्म का रुकना) कहा जाता है। अर्थात महिलाओं का मासिक-धर्म का बंद हो जाना नष्टार्तव कहलाता है।
यदि गर्भाशय का मुंह किसी एक ओर मुड़ जाता है तो भी रज:स्राव नहीं होता है।
मासिक स्राव एक बार शुरू होने के बाद प्रत्येक 4 सप्ताह पर रजोनिवृत् की उम्र तक नियमित रूप से होता रहता है। गर्भावस्था में मासिक स्राव का रुकना स्वाभाविक होता है। अन्य समय में रुके तो गर्भाशय का विकार समझकर चिकित्सा करनी चाहिए।
कारण:
शरीर में खून की कमी, ठंड के कारण दोषों की विकृति से रक्त का गाढ़ा होना, गर्भाशय की नसों का मुंह बंद हो जाना, गर्भाशय में सूजन आना अथवा घावों का होना, गर्भाशय से रज निकलने के मार्ग में मस्सा उत्पन्न हो जाना, अधिक मोटापा तथा गर्भाशय के मुंह का किसी ओर घूम जाना और अधिक चिंता आदि कारणों से स्त्रियों का मासिक-धर्म अर्थात रज:स्राव बंद हो जाता है।
लक्षण:
सभी युवा महिलाएं प्रत्येक महीने रजस्वला होती है तथा उनकी योनि से 3 से 5 दिनों तक एक प्रकार का रक्त जिसे `रज` कहते हैं रिस-रिसकर निकला करता है। इसी को मासिकधर्म अथवा `रजोदर्शन` अथवा ऋतुस्राव आदि नामों से जाना जाता है। रजोदर्शन का समय आमतौर पर बालिकाओं में 12 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होता है तथा लगभग 45 से 50 वर्ष की आयु में समाप्त हो जाता है। रजोधर्म के बाद 16 दिनों तक गर्भाशय का मुंह खुला रहता है। इस अवधि में मैथुन करने से गर्भ स्थिति होने की संभावना बनी रहती है। इसके बाद गर्भ नहीं ठहरता है। रज:स्राव बंद होने के 16 दिन बाद तक स्त्री को ऋतुमती कहा जाता है।
भोजन और परहेज:
कष्टार्तव (मासिकस्राव का कष्ट के साथ आना) व नष्टार्तव के रोगी के लिए छाछ (मट्ठा), दही, कांजी व मछली का सेवन हानिकारक होता है। अत: इसका सेवन करना नहीं करना चाहिए।
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. बीजक : लगभग 6 से 12 ग्राम बीजक लकड़ी का लुगदी ठण्डे पानी के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से बंद मासिक-धर्म की बीमारी में स्त्री को आराम मिलता है।
2. तिल:
काले तिल, त्रिकुटा और भारंगी सभी 3-3 ग्राम लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को गुड़ अथवा लाल शक्कर मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बंद मासिक धर्म खुल जाता है।मासिक धर्म (माहवारी) रुकावट में तिल के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा 40 से 80 मिलीलीटर या तिल का चूर्ण 10 से 20 ग्राम रोजाना 2-3 बार सेवन करने से आर्तव (माहवारी) जारी हो जाता है। गर्भाशय पर इसका संकोचन प्रभाव होता है।3. कमल: कमल की जड़ को पीसकर खाने से रजोधर्म (मासिक-धर्म) जारी हो जाता है।
4. गुड़हल: लाल गुड़हल के फूलों को पीसकर पानी के साथ सेवन करने से रजोधर्म (मासिक स्राव) होने लगता है।
5. जीरा: काला जीरा 20 ग्राम, एरण्ड का गूदा 100 ग्राम तथा सोंठ 10 ग्राम सभी को मिलाकर बारीक पीसकर रख लें तथा पीड़ित महिला के पेट के ऊपर सुहाता-सुहाता गरम लेप करें। इस प्रयोग को लगातार कई दिनों तक करते रहने से नलों (नलिकाओं) का दर्द मिट जाता है और रजोधर्म (मासिक स्राव) होने लगता है।
6. मालकांगनी:
मालकांगनी के पत्ते और विजयसार की लकड़ी दोनों को दूध में पीसकर-छानकर पीने से बंद हुआ मासिक-धर्म पुन: शुरू हो जाता है।मालकांगनी के पत्तों को पीसकर तथा घी में भूनकर महिलाओं को खिलाना चाहिए। इससे महिलाओं में बंद हुआ मासिक-धर्म पुन: शुरू हो जाता है।7. मूली: मूली के बीज, गाजर के बीज तथा मेथी के बीज इन्हें 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीस-छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गर्म पानी पीने के साथ सेवन करने से रुका हुआ मासिक-धर्म खुल जाता है।
8. गाजर: केवल गाजर के बीजों को सिल पर पीसकर पानी में छानकर पीने से बंद हुआ मासिक-धर्म पुन: शुरू हो जाता है।
9. दन्तीमूल: दन्तीमूल, कटुतुम्बी के बीज, छोटी पीपल, मैनफल की जड़ तथा मुलहठी को बहुत ही बारीक पीसकर तथा थूहर के दूध के साथ बत्ती बनाकर योनि मार्ग में रखने से नष्टार्तव (मासिक धर्म का न होना) पुन: आरम्भ हो जाता है।
9. सोंठ: सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल और भारंगी को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर घी में भुनी हुई हींग 10 ग्राम को कूट-छानकर रख लें। इसे लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग ताजे पानी अथवा गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन कराना चाहिए। इसे 4-5 सप्ताह तक निरन्तर प्रयोग करने से नष्टार्तव यानी मासिक धर्म का बंद हो जाने की बीमारी समाप्त हो जाती है।
10. भारंगी: भारंगी, सोंठ, काले तिल और घी इन्हें कूट-पीसकर मिला लें तथा इसे लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से पीयें। इससे बंद हुआ मासिक धर्म पुन: शुरू हो जाता है।