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महिलाओं के यौन रोग :-कष्टार्त्तव (मासिक-धर्म का कष्ट से आना)

कष्टार्त्तव (मासिक-धर्म का कष्ट से आना)

परिचय:

मासिक-धर्म यदि कष्ट के साथ स्रावित (निकलना) हो तो उसे कष्टरज (मासिक-धर्म का कष्ट से आना) कहते हैं। ऋतुस्राव (मासिक धर्म) में नवयुवतियों को हल्की पीड़ा होना स्वाभाविक होता है। लेकिन यदि ऋतुस्राव के समय पीड़ा अधिक बढ़ जाए तो किसी रोग का कारण बन सकता है। मासिक-धर्म की पीड़ा लड़कियों को अधिक विचलित कर देती है।

मासिक-धर्म महिलाओं के शरीर का प्राकृतिक धर्म है। किसी-किसी को मासिक-धर्म में दर्द होता है। इसे कष्टार्तव कहते हैं। यह विलासिता पूर्ण जीवन बिताने वाली युवतियों में प्राय: 18-25 वर्ष की अवस्था में होता है। यह दो प्रकार का होता है।

पहला- रक्ताधिक कष्टार्तव और दूसरा- ऐंठनयुक्त कष्टार्तव।
रक्ताधिक कष्टार्तव: यह दर्द विवाहित नारियों में गर्भाशय के आसपास के अंगों में होता है। यह दर्द मासिक-धर्म के 3-4 दिन पहले ही आरम्भ हो जाता है तथा मासिक-धर्म चालू होने के बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है। कम मेहनत करने वाली महिलाओं को यह ज्यादा होता है। ज्यादा चीनी खाने और व्यायाम करने से इसमें लाभ मिलता है।ऐंठनयुक्त कष्टार्तव: हॉस्पिटलों में इसी से पीड़ित महिलाएं ज्यादा आती हैं। यह प्राय: कुंवारी लड़कियों को होता है। यह मासिक-धर्म के प्रारम्भ से प्रथम प्रसव तक होता है। यह दर्द गर्भाशय में होता है। तेज दर्द आधा घंटे तक रहता है। इसमें कंपकपी, जी मिचलाना और उल्टी भी हो जाती है।कारण:

मासिक-धर्म में दर्द होने के कारण पूर्णरूप से अभी तक ज्ञात नहीं हुए हैं, जो ज्ञात हुए हैं वे हैं- बच्चेदानी का छोटा होना, बच्चेदानी में रक्त की कमी तथा जननेन्द्रिय के सभी भागों को सामंजस्य काम न करना। हार्मोन्स में असंतुलन मासिक-धर्म का प्रमुख कारण होता है। स्नायु और मस्तिष्क के आवेगों को संतुलित रखने वाले सोडियम और पोटैशियम तत्वों का भोजन में असंतुलन रहता है जिस कारण स्त्रियों में मानसिक तनाव बना रहता है। विवाह और बच्चा होने के बाद यह बीमारी अपने आप ही ठीक हो जाती है।

लक्षण:

मासिक-धर्म होने के 2-3 दिन पहले से सिर दर्द, शरीर में जलन, पेट और कमर में दर्द होता है। कभी-कभी ये दर्द बहुत बेचैन करता है।

विभिन्न औषधियों से उपचार-

1. कलौंजी:
कलौंजी (मंगरैला) आधा से एक ग्राम सेवन करने से मासिकस्राव का दर्द नष्ट हो जाता है और बंद मासिक-धर्म शुरू हो जाता है।3 ग्राम कलौंजी का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से ऋतुस्राव (मासिकस्राव) की पीड़ा की विकृति नष्ट हो जाती है।2. बांस: बांस के पत्ते तथा बांस की कोमल गांठ का काढ़ा पिलाने से गर्भाशय का संकोचन और आर्तव (माहवारी) की शुद्धि होती है। इसे 40 मिलीलीटर की मात्रा में प्रत्येक 6 घंटे पर पानी में घुले पुराने गुड़ के साथ दें। इसे मासिक स्राव से पांच दिन पहले ही पिलाना चाहिए।

3. कुसम: कुसुम के सूखे फूलों का चूर्ण 4 ग्राम प्रतिदिन सुबह-शाम पानी के साथ देने से कष्टरज (माहवारी में कष्ट) में लाभ मिलता है तथा पीड़ा बंद हो जाती है। इससे मासिक-धर्म खुलकर आता है।

4. सोंठ: 10 ग्राम सोंठ को 300 मिलीलीटर जल में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में पुराना गुड़ मिलाकर पीने से ऋतुस्राव (माहवारी) की पीड़ा नष्ट हो जाती है। नोट: इसके सेवन के समय ठंडा जल तथा खट्टी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

5. जीरा: कालाजीरा 6 ग्राम, दालचीनी 6 ग्राम, सोंठ, चित्रक/चीता, सौंफ 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर 100 मिलीलीटर में उस समय तक उबाले जब यह 25 मिलीमीटर की मात्रा में शेष रह जाए। इसे 30 से 50 मिलीमीटर की मात्रा में दिन में 2-3 बार सेवन करने से मासिक-धर्म में दर्द नहीं होता है।

6. नीम:
नीम के पत्तों को भाप में गर्म करके योनि में रखने से मासिक-धर्म की पीड़ा नष्ट हो जाती है।यदि मासिक-धर्म के दिनों में जांघों में दर्द हो तो प्रतिदिन नीम के पत्तों का रस 6 मिलीलीटर, अदरक का रस लगभग 12 मिलीलीटर, इतनी ही मात्रा में पानी मिलाकर पिलाने से जांघों का दर्द तुरंत समाप्त हो जाता है।7. मूली: मूली के बीजों को 5 ग्राम की मात्रा में पीसकर सुबह, दोपहर, शाम (3 बार) गर्म जल के साथ सेवन करने से ऋतुस्राव (मासिक-धर्म) में कष्ट की परेशानी नष्ट हो जाती है।

8. गोखरू: गोखरू को 15 ग्राम की मात्रा में लेकर 250 मिलीलीटर जल में उबालकर उसका काढ़ा बना लें। इस काढ़े में खुरासानी अजवायन का चूर्ण 1 ग्राम और खाने का सोडा 0.6 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सेवन करने से ऋतुस्राव की पीड़ा नष्ट हो जाती है।

9. अजवायन: 10 ग्राम अजवायन को 100 ग्राम गुड़ के साथ लोहे की कड़ाही में घी डालकर हलवा बनाये। इस हलवे को 2-3 बार सेवन करने से मासिक-धर्म की पीड़ा नष्ट हो जाती है।

10. बथुआ: 5 ग्राम बथुए के बीजों को 200 मिलीलीटर पानी में खूब देर तक उबालें। 100 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाने पर इसे छानकर पीने से मासिक-धर्म के समय होने वाली पीड़ा नहीं होती है। 


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