रक्त प्रदर का घरेलु ईलाज
रक्तप्रदर
परिचय:
मासिकस्राव में सामान्य से अधिक रक्तस्राव (खून आना) आना या दो मासिकस्राव के बीच भी रक्तस्राव आना आदि रक्तप्रदर के लक्षण होते हैं रक्तप्रदर से पीड़ित स्त्री के योनि से अधिक रक्त (खून) बहता है। इस रोग के होने पर स्त्रियां शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाती है। योनि से अधिक खून निकलने के कारण रोगी स्त्रियां इस रोग को लम्बे समय तक छिपाकर रखती हैं तथा संकोच और लज्जा के कारण यह रोग और बढ़ जाता है।
कारण:
इस रोग में कई-कई दिनों तक रक्त योनि से बहता रहता है। गर्भपात कराने से भी यह रोग हो जाता है। अधिक शोक, चिंता, क्रोध, ईर्ष्या और शारीरिक क्षमता से अधिक मेहनत करने से भी रक्तप्रदर का रोग उत्पन्न हो जाता है।
लक्षण:
कमर दर्द, रक्ताल्पता (खून की कमी), शारीरिक कमजोरी, सिर में चक्कर आना, अधिक प्यास लगना तथा आंखों के आगे अंधेरा छाना आदि लक्षण रक्तप्रदर से पीड़ित स्त्री में दिखाई पड़ते हैं।
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. आंवला:
रक्तप्रदर से पीड़ित स्त्री के गर्भाशय (जरायु) के मुंह पर आंवले के बारीक चूर्ण का लेप करना चाहिए अथवा आंवले के पानी से रूई या साफ कपड़ा भिगोकर गर्भाशय के मुंह पर रखना चाहिए। इससे स्त्री को अधिक आराम मिलता है।10 ग्राम आंवले का रस 400 मिलीलीटर पानी में डालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से योनि को साफ करें। इस प्रकार से उपचार कुछ दिनों तक लगातर करें, इससे रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।आंवला के 20 मिलीलीटर रस में एक ग्राम जीरा का चूर्ण मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करें। इससे प्रदर रोग कुछ दिनों में ही ठीक हो जाता है।5 ग्राम की मात्रा में आंवला को पीसकर 3 ग्राम शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से रक्तप्रदर में आराम मिलता है।25 ग्राम आंवले का चूर्ण 50 मिलीलीटर पानी में डालकर रख लें। सुबह उठकर उसमें जीरे का 1 ग्राम चूर्ण और 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।2. छोटी माई: छोटी माई का चूर्ण 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। छोटी माई में रक्तस्तम्भक (खून को रोकने या गाढ़ा करने) आदि गुण अधिक होते हैं। इसे पानी में भिगोकर छान लें और जो पानी बचे उसमें रूई या कपड़ा भिगोकर गर्भाशय के मुंह पर रखें। इससे अधिक लाभ मिलता है।
3. क्षीरी: 50 ग्राम क्षीरी के पेड़ की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में डालकर काढ़ा बनाकर पिचकारी से योनि साफ करें। इससे रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।
4. बड़ी माई: बड़ी माई का चूर्ण 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से रक्तप्रदर (अव्यार्तव) ठीक हो जाता है।
5. पत्थरचूर: पत्थरचूर के पत्तों का रस लगभग 5 ग्राम की मात्रा में रोगी स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से रक्तस्राव (खूनी प्रदर) ठीक हो जाता हैं।
6. लाख:
लाख को घी में भूनकर या दूध में उबालकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध में मिलाकर सेवन करने से रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) में लाभ मिलता है।लाख के चूर्ण को घी के साथ चाटने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।शुद्ध लाख 1-2 ग्राम को लगभग आधा ग्राम चावल धोये हुए पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।7. दारुहल्दी: गर्भाशय की शिथिलता यानी ढीलापन के चलते उत्पन्न रक्तप्रदर में दारूहल्दी के काढ़े को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। यह श्वेत प्रदर में भी लाभकारी होता है।
8. अडूसा:
अडूसा के पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से खूनी प्रदर मिट जाता है।वासा के पत्तों के 10 मिलीलीटर रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से कुछ दिनों में रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।9. बबूल: बबूल, राल, गोंद, और रसौत को 5-5 ग्राम लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर 5 ग्राम में दूध के साथ रोजाना सेवन करने से रक्तप्रदर मिट जाता है।
10. दूब:
ताजी दूब को पानी के साथ उखाड़कर पानी से धोकर बिल्कुल साफ करें। फिर उस दूब को पानी के साथ पीसकर, किसी कपडे़ में बांधकर रस निकालें। इसे 7-8 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय पीने से रक्तस्राव की बीमारी मिट जाती है।हरी दूब (दूर्वा) का रस 10 मिलीलीटर प्रतिदिन शहद के साथ सुबह, दोपहर और शाम सेवन करने से अत्यार्तव (रक्तप्रदर) ठीक हो जाता है।मासिकस्राव में अधिक रक्तस्राव आने पर दूब का रस आधा कप मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है। इसके साथ ही चावल का धोवन अनुपान रूप में मिला दिया जाए तो परिणाम और उत्तम मिलता है।2 चम्मच दूब के रस में आधा चम्मच चंदन और मिश्री का चूर्ण मिलाकर 2 से 3 बार सेवन करने से रक्तप्रदर नष्ट हो जाता है।