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संभोग के प्रति स्त्रियों की उपेक्षा (Ignoring women to orgasm)

संभोग के प्रति स्त्रियों की उपेक्षा (Ignoring women to orgasm)

परिचय

किसी भी पति और पत्नी को अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए जरूरी है कि उनके बीच सेक्स संबंध भी अच्छे हो। जहां भी पति और पत्नी के बीच बनने वाले सेक्स संबंध संतुष्टि देने वाले होते हैं वहां पर ही पति और पत्नी के बीच प्रेम संबंधों में मजबूती आती है। ठीक इसके विपरीत अगर पति-पत्नी के बीच बनने वाले संबंध दोनों को संतुष्टि देने वाले नहीं होते तो उनके बीच में कड़वाहट पैदा हो जाती है और इन संबंधों को अगर समय रहते नहीं संभाला जाता तो यह तलाक का कारण बन जाता है। इसलिए सेक्स संबंधों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। कभी-कभी सेक्स संबंधों में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है जोकि खतरनाक साबित होता है। यह अवरोध पति के अंदर की यौन दु्र्बलता के कारण हो सकता है जिसके कारण वह अपनी पत्नी को सेक्स के रूप में पूरी तरह संतुष्टि नहीं दे पाता और यही अवरोध पत्नी के कारण भी पैदा हो सकता है जो कामशीलता के रूप में दिखाई देता है जिसके अंतर्गत पत्नी की रुचि सेक्स संबंधों के प्रति कम होती जाती है। सेक्स संबंधों में अरुचि होना या उपेक्षा का भाव सेक्स संबंधों से मिलने वाले आनंद को दूर कर देता है। इस स्थिति से बचने का प्रयास करना चाहिए।

सेक्स संबंधों में पूरी तरह आनंद और संतुष्टि प्राप्त करने के लिए पति और पत्नी को ही पूरी तरह योगदान देना चाहिए। पुरुष हर समय सेक्स संबंध बनाने के लिए तैयार रहता है लेकिन स्त्रियों में कई बार सेक्स संबंधों को लेकर अरुचि पैदा हो जाती है। वह अपने आपको दिमागी और शारीरिक रूप से इन संबंधों के लिए तुरंत तैयार नहीं कर पाती। पुरुष स्त्रियों की इन भावनाओं को अनदेखा करके उसके साथ जबर्दस्ती सेक्स संबंध बनाने लगता है। इसलिए सुखी और स्वस्थ संबंधों के लिए यह जरूरी है कि स्त्री और पुरुष दोनों ही शारीरिक तथा मानसिक रूप से पूरी तरह उमंग के साथ इसमें लीन हो।

सेक्स शास्त्रियों का मानना है कि सेक्स क्रिया में स्त्री का योगदान खास मायने रखता है क्योंकि पुरुष को वीर्यपात होते ही चरम सुख की अनुभूति हो जाती है लेकिन स्त्री के लिए चरम सुख की प्राप्ति इतनी सरल और सहज नहीं होती है। पुरुष सेक्स करने के लिए हर समय तैयार रहता है जबकि स्त्री को इसके लिए तैयार होने में कुछ समय लगता है। बहुत से मौकों पर पुरुष को स्त्री को तैयार भी करना होता है। इसलिए सेक्स संबंधों को जीवंत बनाए रखने में स्त्री की खास भूमिका होती है। हमारे यहां की सभ्यता, संस्कृति और मर्यादाओं के चलते काफी लंबे समय तक सेक्स संबंधों के दौरान स्त्री के सहयोग को स्वीकार ही नहीं किया गया था। उसका सहयोग सेक्स संबंधों के समय खामोशी के साथ समर्पण तक ही सीमित था। उसे सिर्फ पुरुष की यौन उत्तेजना को शांत करने का साधन समझा जाता था। स्त्री को सेक्स संबंधों में संतुष्टि मिली है या नहीं इस तरफ कोई ध्यान नहीं देता था। कभी किसी खास मौके पर अगर सेक्स संबंधों के लिए पहल करती थी तो उसके चरित्र पर ही शक किया जाता था।

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