फिरंग रोग क्या होता है (Firang)
फिरंग (Firang)
इस रोग की चिकित्सा घरेलू इलाज के रूप में करना जोखिम उठाना है, क्योंकि इसकी चिकित्सा आसान नहीं है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में फिरंग रोग को सिफलिस कहते हैं। फिरंग रोग उपदंश से मिलता जुलता पर अलग प्रकार का होता है।
यह पश्चिम में पाया जाता है और वहीं से भारत आया, फिरंगी से फिरंग बना इसलिए इसे फिरंग रोग कहा गया। फिरंग यानी सिफलिस रोग की चर्चा पुराने आयुर्वेदिक ग्रंथों में नहीं मिलती।
भावप्रकाश ग्रंथ में इसकी जानकारी मिलती है, इसकी रचना सन् 1550 के आसपास हुई और तभी पुर्तगाली भारत आ चुके थे, अतः ऐसा माना जाता है कि उनके साथ ही यह रोग भारत में आया।
फिरंग और उपदंश में कई बातें मिलती हैं, लेकिन उपदंश को फिरंग नहीं कह सकते, दोनों रोग अलग-अलग हैं। भावप्रकाश आयुर्वेदिक ग्रंथ के अनुसार फिरंग देश के पुरुषों व स्त्रियों के साथ यौन संसर्ग करने से इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
उत्पत्ति के प्रमुख कारण
इस रोग को आतशक या गरमी भी कहते हैं। वेश्या या कॉलगर्ल टाइप की स्त्रियां अक्सर इस रोग से ग्रस्त रहती हैं। इस रोग से ग्रस्त स्त्री के साथ संभोग करने या ऐसे व्यक्ति के निकट संपर्क में रहने, साथ खाने-पीने या उसका अधोवस्त्र (जांघिया, चड्डी आदि) पहनने से यह रोग तुरंत दबोच लेता है। इस रोग के लक्षण आमतौर पर 3-4 दिन में प्रकट होने लगते हैं।
पहला कारण : 90-95 प्रतिशत मामलों में फिरंग रोग होने का कारण रोगग्रस्त व्यक्ति के साथ सहवास करना ही पाया जाता है, इसीलिए इसे मुख्यतः मैथुनजन्य रोग माना जाता है।
दूसरा कारण : जननेन्द्रिय के अतिरिक्त अन्य शारीरिक अंगों को चूमना, परस्पर आलिंगन करना या अन्य तरीकों से निकट संपर्क में रहना।
तीसरा कारण : माता के गर्भ में रहते हुए शिशु का इस रोग से प्रभावित हो जाना। यह प्रभाव गर्भकाल के उत्तरार्ध भाग (बाद वाली अवधि) में ज्यादातर होता है। प्रथम और द्वितीय कारणों से होने वाले फिरंग रोग को स्वकृतजन्य और तीसरे कारण से होने वाले फिरंग रोग को सहज या जन्मजात कहते हैं।