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अण्डकोष का बढ़ना (Hydrocele)

अण्डकोष का बढ़ना (Hydrocele)

परिचय :

यह रोग अण्डों में किसी पर आघात के पहुंचने के कारण उत्पन्न होते हैं जैसे रस और खून आदि की वृद्धि होने से अण्डकोष वृद्धि हो जाती है। इसी को अण्डवृद्धि कहते है। यह रोग ज्यादा बढ़ने पर परेशानी उत्पन्न करता है। कुपित हुए दोष जब अण्डकोष वाहिनी धमनी में प्राप्त होकर, उन कोषों की वृद्धि करते है तो उसी को अण्डवृद्धि कहते है। अण्डवृद्धि मुख्य रूप से दो प्रकार के माने जाते है-
रक्तज
मूत्रज।

भोजन तथा परहेज :

इस रोग में अधिक खाना खाना, अधिक परिश्रम, मल-मूत्र और शुक्र का वेग रोकना, गरिष्ठ यानी भारी खाना, दही, उड़द, मिठाई, बासी अन्न, मैथुन, साइकिल की सवारी सभी हानिकारक है।
इस रोग में वमन, पाचक पदार्थ सेवन, ज्वार, स्वेद, विरेचन (दस्त लाने वाली वस्तुएं), ब्रह्मचर्य-पालन (संयासी जीवन), गेहूं, शालिधान्य, पुराना चावल, ताजा मठ्ठा, गाय का दूध और हरे शाक सभी अण्डवृद्धि में फायदेमन्द है।

चिकित्सा:

कुन्दरू

कुन्दरू, मस्तंगी, सोंठ, तम्बाकू, आंवा हल्दी, वत्सनाग, पोस्त डोडा, वच, सभी को बराबर मात्रा में लेकर इसको कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर मकोय के रस के साथ आधे-आधे ग्राम की गोलियां बना लें। इस गोली को पानी के साथ घिसकर अण्डकोष पर लगाने, और इसी चूर्ण की पोटली से थोड़ा गर्म सेंक करें। इससे अण्डकोष के बढ़े हिस्से को रोकने में लाभ होता है।

एरण्ड

प्रतिदिन सुबह एरण्ड के तेल का जुलाब देना चाहिए और रोज दो बार एरण्ड के तेल से अण्डकोष पर मालिश करनी चाहिए। इससे अण्डवृद्धि दूर हो जाती है।
10 मिलीलीटर एरण्ड तेल को 3 ग्राम गुग्गुलु और 10 मिलीलीटर गौमूत्र के साथ सुबह-शाम पीने से एवं अण्डकोष पर एरण्ड पत्ते गरम करके बांधने से अण्डकोष वृद्धि ठीक हो जाती है।

अंगूर

अंगूर के 5-6 पत्तों पर घी चुपड़कर तथा आग पर खूब गर्म कर बांधने से अण्डकोषों की सूजन बिखर कर ठीक हो जाती है।

आम

25 ग्राम आम के पत्ते, 10 ग्राम सेंधा नमक, दोनों को पीसकर हल्का-सा गर्म करके लेप करने से अण्डकोष की वृद्धि सही हो जाती है।

तंबाकू

तंबाकू के ताजे पत्ते पर घी चुपड़ कर, थोड़ा गर्म करें और अण्डकोष पर बांधने से सूजन दर्द सभी में आराम मिलता है।

सेंधानमक

सेंधानमक को पीसकर गाय के घी में मिलाकर 7 दिन तक सेवन करने से अण्डकोष में होने वाली वृद्धि में कमी होगी और आराम मिले

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