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इमली के 100 उपयोग     (100 Use of Tamarind Tree)


        इमली के 100 उपयोग
    (100 Use of Tamarind Tree)
परिचय :
इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च के महीनों में इमली पक जाती है। इमली शाक (सब्जी), दाल, चटनी आदि कई चीजों में डाली जाती है। इमली का स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। पुरानी इमली नई इमली से अधिक गुणकारी होती है। इमली के पत्तों का शाक (सब्जी) और फूलों की चटनी बनाई जाती है। इमली की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस कारण लोग इसकी लकड़ी से कुल्हाड़ी आदि के दस्ते भी बनाते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी इमली
गुजराती आंबली
मराठी चिंच
बंगाली तेतुला
फारसी तिमिर
अरबी तमर हि
हानिकारक प्रभाव : कच्ची इमली भारी, गर्म और अधिक खट्टी होती है। जिन्हें इमली अनुकूल नहीं होती है, उन्हें भी पकी इमली से दान्तों का खट्टा होना, सिरदर्द
और जबडे़ में दर्द, सांस की तकलीफ,
खांसी और बुखार जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं।
मात्रा : इमली का लगभग 6 से 24 ग्राम फल का गूदा तथा 1 से 3 ग्राम बीज का चूर्ण लेना चाहिए।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. खूनी बवासीर (रक्त-अर्श):
इमली की छाल का चूर्ण बनाकर कपडे़ में छानकर सुबह तथा शाम गाय के दही के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
खूनी बवासीर के रोग में इमली के पत्तों का रस पीने से बहुत लाभ होता है।
1 से 2 ग्राम इमली के बीजों की राख को दही के साथ मिलाकर चाटने से खूनी बवासीर मिट जाती है।
2. प्रमेह:
6 ग्राम इमली की छाल की राख को लगभग 55 ग्राम कच्ची गिरी के साथ मिलाकर 5-6 दिन तक सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।
125 ग्राम इमली के बीजों को 250 मिलीलीटर दूध में भिगो दें। 3 दिन के बाद छिलके उतारकर, साफ करके पीस लेते हैं। इसे सुबह-शाम 6 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध या पानी से लेने से प्रमेह रोग दूर होता है।
3. पाण्डु (पीलिया) रोग:
10 ग्राम इमली की छाल की राख को 40 ग्राम बकरी के मूत्र में मिलाकर देने से लाभ मिलता है।
इमली को पानी में भिगोकर, मथ (मिलोकर) कर पानी पीना उपयोगी है।
4. बिच्छू के विष : इमली के सिंके हुए बीजों को घिसें, जब इसका सफेद भाग दिखे तो इसे डंक के स्थान पर लगा दें। यह बीज विश (जहर) चूसकर अपने आप ही हटकर गिर जाएगा।
5. सिर दर्द:
पानी में इमली को भिगोकर इसमें थोड़ी शक्कर मिलाकर सुबह और शाम को 2 या 3 बार पीने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
10 ग्राम इमली को 1 गिलास पानी में भिगोकर थोड़ा सा मसलकर और छानकर उसमें शक्कर मिलाकर पीने से पित्त से उत्पन्न सिर दर्द दूर होता है।
इमली की छाल का चूर्ण अथवा राख गर्म जल में डालकर पीने सिर दर्द में लाभ होता है।
6. चूहे के विष पर : 40 ग्राम इमली और 20 ग्राम धमासे को पुराने घी में मिलाकर 7 दिन तक खाने से चूहे का जहर उतर जाता है।
7. आंखों में दर्द: इमली के हरे पत्तों और एरण्ड के पत्तों को गर्म कर इसका रस निकाल लें, फिर इसमें फूली हुई फिटकरी और चना भर अफीम तांबे के बर्तन में घोंटे और उसमें कपड़ा भिगोकर आंखों में रखें। इससे आंखों के दर्द में लाभ होता है।
8. अजीर्ण (पुरानी कब्ज): इमली की ऊपर की छाल को जलाकर, सोते समय लगभग 6 ग्राम गर्म पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण रोग में लाभ होता है।
9. भूख कम लगना: इमली के पत्तों की चटनी बनाकर खाने से भूख तेज लगने लगती है।
10. भांग के नशे पर: इमली को गलाकर उसका पानी पीने से भांग का नशा उतर जाता है।
11. अरुचि और पित्त: अन्दर से पकी हुई तथा अधिक गूदेवाली इमली को ठण्डे पानी में डालकर इसमें शक्कर मिलाना चाहिए। इसके बाद इसमें इलायची के दाने, लौंग, कपूर और कालीमिर्च डालकर बार-बार कुल्ला करें। इससे अरुचि और पित्त का रोग दूर होता है।
12. कब्ज तथा पित्त: 1 किलो इमली को 2 लीटर पानी में 12 घंटे तक गर्म करें, जब आधा पानी जल जाये तो उसमें 2 किलो चीनी मिला दें। इसे शर्बत की तरह बनाकर रोजाना 20 ग्राम से लेकर 50 ग्राम तक कब्ज वाले रोगी को रात में और पित्त वाले को सुबह उठते ही पीने से लाभ होता है।
13. अजीर्ण और अरुचि: सुपारी के बराबर पुरानी इमली को लेकर 1 कलई के बर्तन में 250 मिलीलीटर पानी में डालकर उसमें भिगोकर रख दें। जब यह खूब अच्छी तरह गल जाए तो हाथ से अच्छी तरह मसलकर उसका पानी दूसरे कलई के बर्तन में निकाल लें और फिर उसमें काला नमक, जीरा और शक्कर डालकर घी में हींग को बघारकर छौंक दें। यह इमली का पानी बहुत रुचिकारक और अन्न को पकाने वाला होता है।
14. पित्त विकार : रात के समय लगभग 1 किलो इमली लेकर एक कलई के बर्तन में पानी डालकर भिगो दें। इसे रात भर भीगा रहने दें। दूसरे दिन पानी सहित बर्तन को चूल्हे पर चढ़ा दें, जब यह अच्छी तरह उबल जाये तो इसे छानकर इसमें 2 किलो चीनी डालकर चाशनी बना लें। इसे 10-10 ग्राम में मात्रा में देने से पित्त शांत होती है और उल्टी भी बंद हो जाती है। इसे इमली का शर्बत कहा जाता है।
15. नशा (शराब, भांग आदि मादक पदार्थों का नशा ): 30 ग्राम इमली तथा खजूर, 10-10 ग्राम कालीद्राक्ष, अनारदाने, फालसे और आंवले लेकर आधा किलो पानी में डालकर भिगो दें। इसके अच्छी तरह भीग जाने पर छान लें। यह शर्बत नशा चढ़ने पर थोड़ा-2 सा पीने से नशा उतर जाता है।
16. उल्टी और अम्लपित्त: इमली की छाल उसके छिलके सहित जलाएं। फिर 10 ग्राम राख को पानी में डालकर पिलाएं। इससे उल्टी तुरन्त बंद हो जाती है। अम्लपित्त की जलन और उल्टी होने पर यह पानी भोजन के बाद देना चाहिए।
17. पेट दर्द:
2 ग्राम इमली की राख को शहद में मिलाकर चाटने से लाभ मिलता है।
इमली की पत्तियों को ठण्डी शर्बत की भांति पीने से पेट के दर्द में लाभ होता है।
18. इमली का गुलकन्द: शीशे के बर्तन में इमली के फूलों की एक परत बिछा दें फिर उस पर मिश्री डालें। मिश्री पर फिर फूल, फूलों पर फिर मिश्री, इस प्रकार शीशे के बर्तन को भरकर 8 दिन तक धूप में रखें। इससे बहुत ही उत्तम गुलकन्द तैयार हो जाता है। यह पित्त के लिए बहुत ही गुणकारी है।
19. हैजा: लहसुन (मट्ठे में भिगोकर छीली हुई) और भिलावां को बराबर में लेकर पुरानी इमली के गूदे में अच्छी तरह घोंटे और चने के बराबर गोली बनाकर रख लें। 15-15 मिनट के बाद 1-1 गोली लेकर 1 चम्मच प्याज के रस के साथ देना चाहिए।
20. शीघ्रपतन (धातु का जल्दी निकल जाना) : आधा किलो इमली के बीज 4 दिनों तक पानी में भिगोकर रखें। उसके बाद इमली का छिलका उतारकर छाया में सुखा लें। सूख जाने पर उसको पीसकर बराबर मात्रा में पिसी हुई मिश्री में मिलाकर सुरक्षित रख लेते हैं। इस चूर्ण को चौथाई चम्मच की मात्रा में दूध से प्रतिदिन सुबह-शाम दिन में 2 बार सेवन करने से 50 दिन में शीघ्रपतन की शिकायत दूर हो जाती है तथा वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
21. लू लगना, शराब या भांग का नशा: 50 ग्राम इमली को 2 घंटे तक आधा किलो पानी में भिगोकर मसल लें और छान लें। इसके बाद इसमें स्वाद के अनुसार कोई भी मीठी चीज जैसे-बूरा, मिश्री, चीनी मिलाकर छान लें और सेवन करें। इस प्रयोग से गर्मी में लू लगना, बेचैनी, जी मिचलाना आदि कष्ट रोग दूर हो जाते हैं। दस्त साफ आता है। भांग का और शराब का नशा उतर जाता है। शरीर की जलन भी कम होती है।
22. अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना): इमली के रस को नमक, कालीमिर्च और सेंका हुआ जीरा मिलाकर प्रयोग करने से अरुचि दूर हो जाती है और मुंह का स्वाद ठीक हो जाता है।
23. गर्मी अधिक लगना:
गर्मी के कारण या किसी बीमारी के कारण प्यास अधिक लगे तो उसे इमली के बीजों को पीसकर 1 से 3 ग्राम प्रतिदिन 2 से 3 बार पिलायें। इससे प्यास कम लगेगी और शरीर की गर्मी दूर होगी।
पकी हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलुवे पर मलने से भी लू का असर मिट जाता है। 1 गिलास पानी में 25 ग्राम इमली को भिगोकर इसका पानी पीने से भी गर्मी में लू नहीं लगती है।
24. हृदय की जलन: मिश्री के साथ पकी हुई इमली का रस सेवन करने से हृदय की जलन मिटती है।
25. गुहेरी:
इमली के बीजों की गिरी साफ पत्थर पर चन्दन की तरह घिसकर गुहेरी पर लगाने से तुरन्त ही ठण्डक पहुंचती है और गुहेरी भी ठीक हो जाती है।
इमली के बीजों के ऊपर का लाल छिलका हटाकर पानी के साथ घिसकर, गुहेरी पर लगाने से बहुत लाभ होता है।
आंखों की पलकों पर होने वाली फुंसी में इमली के बीज को पानी में घिसकर चन्दन की तरह लगाने से गुहेरी में शीघ्र लाभ होता है।
26. प्लेग, गर्मी का बुखार,
पीलिया : इमली का पानी पीने से प्लेग, गर्मी का बुखार और पीलिया का रोग दूर होता है।
27. फोड़े-फुन्सी और घाव:
30 ग्राम इमली के गूदे को 1 गिलास पानी में मसलकर मिलाकर पीने से फोड़े-फुन्सी में ठीक होती हैं।
इमली के 10 ग्राम पत्तों को गर्म करके उसकी पोटली बनाकर बांधने से फोड़ा पककर जल्दी फूट जाता है।
इमली के बीजों की पोटली बांधने से फुंसियां मिट जाती हैं।
28. कास (खांसी): 14 से 28 मिलीमीटर पत्तों का काढ़ा आधे ग्राम घी में भुनी हींग एवं 2 ग्राम सेंधानमक के साथ सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
29. दाद:
इमली के पत्तों का रस सेवन करने से लाभ मिलता है। इमली के बीजों को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद दूर हो जाता है।
इमली के बीजों को सिरके के साथ पीसकर दाद पर लगाने से लाभ होता है।
इमली के बीज को नींबू के रस के साथ पीसकर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
40 ग्राम माजूफल का चूर्ण, 5 ग्राम इमली की छाल की राख और लगभग 3.20 ग्राम कपूर को नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
30. मसूरिका: 3 से 6 ग्राम तक इमली के पत्तों का चूर्ण ठण्डे पानी के साथ दिन में सुबह, दोपहर और शाम लेने से लाभ मिलता है।
31. वातरोग: इमली के पत्तों को ताड़ी (शराब) के साथ पीसकर गरम करके दर्द वाले स्थान पर बांधने से लाभ होता है।
32. सूजन: इमली के पत्तों को गर्म करके सूजन की सिकाई करने से लाभ होता है।
33. स्वरभेद (आवाज का बैठ जाना): इमली के 1 ग्राम पुराने फलों के चूर्ण को शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
34. मुंखपाक (मुंह में छाले होना): इमली के पानी से कुल्ले करने से पित्त जन्य मुखपाक मिट जाता है।
35. आंख की सूजन: इमली के पत्तों की पुल्टिश (पोटली) बांधने से आंख की सूजन मिट जाती है।
36. गले की सूजन: 6 ग्राम इमली को दो किलो पानी में उबाल लें। उबलने के बाद जब पानी आधा रह जाए तो उसमें 10 ग्राम गुलाबजल मिलाकर छानकर कुल्ले करने से गले की सूजन दूर होती है।
37. अतिसार (दस्त),
आमातिसार:
इमली के 10-15 ग्राम पत्तों का काढ़ा बनाकर सेवन करने से आमातिसार मिटता है।
5 से 10 ग्राम इमली के पत्तों के रस को थोड़ा सा गर्म करके पिलाने से आमातिसार मिटता है।
15 ग्राम इमली के बीजों के छिलके, 6 ग्राम जीरे और ताड़ की चीनी को बारीक पीसकर 3-3 या 4-4 घंटे के अन्तर से सेवन करने से पुराना आमातिसार मिट जाता है।
3 से 6 ग्राम इमली के बीजों का चूर्ण पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अतिसार और आमातिसार मिटता है।
इमली के पुराने वृक्ष के जड़ की छाल और कालीमिर्च आधी मात्रा में लेकर छाछ के साथ पीसकर मटर के आकार की गोलियां बना लें। इसकी 1 से 2 गोली दिन में 3 बार देने से अमातिसार (ऑवदस्त) बहुत ही जल्दी दूर हो जाते हैं।
इमली के बीज को अच्छी तरह पीसकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण छाछ को मिलाकर पीयें।
इमली की छाल को पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में लेकर दही के साथ पीयें।
38. प्रवाहिका (पेचिश): इमली की पत्तियों के रस को लोहे की कड़ाही में छोंककर 10-20 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार कुछ दिनों तक सेवन करने से प्रवाहिका के रोग में लाभ मिलता है।
39. बहुमूत्र (पेशाब का बार-बार) आना: इमली के बीज सुबह 10 ग्राम की मात्रा में पानी में भिगो दें। रात में इसका छिलका उतारकर अन्दर की सफेद मींगी का सेवन करके ऊपर से गाय का दूध का पीने से बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) के रोग में लाभ मिलता है।
40. वीर्यविकार:
इमली को पानी में कुछ दिन भिगोकर छिलका उतार दें। छिलके निकाले बीजों को सुखाकर बारीक पीस लें, इसे एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार दूध के साथ सेवन करने से वीर्य का पतलापन दूर होता है।
इमली के बीजों को भूनकर छिलका उतारकर चूर्ण बना लें फिर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर 15 दिनों तक रोजाना सेवन करने से वीर्य का पतलापन, मूत्रकृच्छ तथा मूत्रदाह (पेशाब में जलन) आदि रोग दूर हो जाते हैं।
10 ग्राम इमली को पानी में 4 दिन तक भिगोकर छील लें तथा उसमें गुड़ 20 ग्राम मिलाकर चने के आकार की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। रात में सोते समय एक-दो गोली सेवन करने से वीर्यस्तम्भन (धातु गाढ़ा) होता है।
41. मोच: किसी अंग में मोच आ जाने पर इमली की पत्तियों को पीसकर गुनगुना करके लेप लगाने से तुरन्त ही आराम हो जाता है।
42. आग से जलने पर:
इमली की छाल को पीसकर घी में मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से लाभ होता है।
जले हुए घाव पर मीठे तेल के साथ इमली की छाल का 2 से 5 ग्राम सूखा चूर्ण मिलाकर लगाने से लाभ प्राप्त होता है।
43. गर्मी के कारण शरीर में जलन:
गर्मी के कारण उत्पन्न हुई शरीर की जलन मिटाने के लिए इमली के कोमल पत्तों और फूलों की सब्जी बनाकर खानी चाहिए।
मिश्री के साथ इमली का शर्बत बनाकर पीने से हृदय की दाह (सीने की जलन) दूर होती है।
10 ग्राम इमली और 25 ग्राम छुहारों को 1 किलो दूध में उबालकर और छानकर पीने से ज्वर की दाह (बुखार की जलन) और घबराहट दूर होती है।
44. सफेद दाग: इमली के बीजों की मींगी और बावची दोनों को बराबर मात्रा में पीसकर लकड़ी से लगाने से सफेद दाग में लाभ होता है।
45. पित्त ज्वर:
25 ग्राम इमली को रातभर 1 गिलास पानी में भिगोकर सुबह उस छने हुए पानी में बूरा मिलाकर ईसबगोल के साथ पिलाने से पित्त ज्वर समाप्त हो जाता है।
पुरानी इमली 25 ग्राम और छुहारे 20 ग्राम लेकर 1 किलो दूध में उबालकर छान लें, इसे पीने से जलन और घबराहट दूर होती है।
46. शीतल पेय : एक गिलास ताजे पानी में स्वाद के अनुसार इमली और चीनी डालकर भिगो दें। एक घंटे बाद इमली को मथकर छानकर पियें। यह उत्तम शीतल पेय है।
47. फ्लुओरिसिस (हडि्डयों का रोग): यह हडि्डयों का रोग है। मनुष्य जब फ्लुओराइड आयन युक्त पानी पीता है तो उसे फ्लुओरिसिस रोग हो जाता है। इस रोग में दान्त खराब हो जाते हैं और पीले पड़ जाते हैं, गल जाते हैं तथा हडि्डयों का भार बढ़ जाता है। जोड़ों में जकड़न होती है और मेरुदण्ड में ऐंठन आ जाती है। इमली का पानी पीने से मनुष्य को फ्लुओरिसिस नहीं होता है। इमली के पानी में नमक मिलाकर पीने से फ्लुओराइड आयन हटाने की क्षमता चालीस गुनी बढ़ जाती है।
48. चेचक: इमली के बीज और हल्दी का चूर्ण ठण्डे पानी के साथ पीने से चेचक का रोग नहीं होता है।
49. शराब का नशा: 1 किलो पुरानी इमली के गूदे को दुगुने पानी में भिगोकर दूसरे दिन सुबह आग पर रखकर 2-3 बार उबाल दें। इसके बाद इसमें 2 किलो चीनी मिलाकर 3-3 घंटे के अन्तर से 10 से 40 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करने से उल्टी, पित्त, लू, जलन, हैजा, अजीर्ण, मन्दाग्नि और शराब का नशा दूर होता है तथा कब्ज दूर होती है।
50. नपुंसकता (नामर्दी): इमली के बीजों को भूनकर उनके छिलके अलग करके, उनका चूर्ण बनाकर रोज 3 ग्राम चूर्ण मिश्री के साथ खाने से वीर्यशक्ति बढ़ने लगती है और नपुंसकता दूर हो जाती है।
51. दिवांधता (दिन में दिखाई न देना): आंखों के दिवांधता रोग में छोटी इलायची के बारीक चूर्ण को बकरी के पेशाब में मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगाने से लाभ मिलता है।
52. बुखार: इमली का पन्ना बनाकर लेने से बुखार में फायदा होता है।
53. वमन (उल्टी):
इमली को रात में पानी में डालकर रख लें। सुबह उसे मसलकर और छानकर उस पानी में थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर थोड़ा-थोड़ा सा पीने से उल्टी बंद होती है।
गर्मी की वजह से अगर उल्टी हो रही हो तो पकी हुई इमली को पानी में निचोड़कर छानकर पी लें। इसको पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है।
वमन (उल्टी) और गर्मी के बुखार होने पर इमली का शर्बत बनाकर पीना चाहिए।
पकी हुई इमली को पानी में भिगोकर इसके रस को पीने से वमन (उल्टी) बंद हो जाती है।
54. कब्ज:
इमली की मज्जा 1 से 3 ग्राम की मात्रा में थोड़ी-सी सनाय या हरड़ के साथ सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
इमली का शर्बत बनाकर सोने से पहले पीने से कब्ज और सुबह पीने से पित्त की बीमारी नहीं होती है।
इमली का शर्बत पीने से 15-20 सालों से पुरानी कब्ज़ से छुटकारा मिल जाता है।
इमली का गूदा पानी में भिगो दें उसी पानी में घोटकर छान लें। फिर उसमें थोड़ा-सा गुड़ और थोड़ी-सी सोंठ डालकर, खाना खाने के बाद खाने से लाभ होता है।
55. जुकाम: अगर सर्दी-जुकाम अभी ही हुआ हो तो इमली के पत्तों को पानी में उबालकर और छानकर इस पानी को 1-1 कप दिन में 2 बार पीने से सर्दी-जुकाम में लाभ मिलता है।
56. आंव (आंव अतिसार):
इमली के पके हुए बीजों के छिलके 6 ग्राम, जीरा 6 ग्राम और 6 ग्राम मिश्री आदि को मिलाकर बारीक चूर्ण कर लें। इस बने चूर्ण को 3-3 घंटे के अन्तराल में दिन में 3 बार खाने से पुराने से पुराना आंव अतिसार समाप्त हो जाता है।
इमली के पत्तों के रस में लोहा बुझाकर पीने से आंव के दस्त में आराम मिलता है।
इमली के छोटे पौधे की जड़ और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इसे दही के साथ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर 1-1 गोली 3 बार सेवन करने से आंव के दस्त में आराम मिलता है।
57. बवासीर (अर्श):
इमली के पत्ते को पानी के साथ पीसकर 2 चम्मच रस निकालें। इसके रस को प्रतिदिन 20 दिन तक सुबह-शाम पीने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) में खून का गिरना बंद हो जाता है।
इमली के ताजे फूलों का रस निकालकर 5 ग्राम रस प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें।
इमली के बीजों का भस्म बनाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में दही के साथ मिलाकर लेने से खूनी बवासीर दूर होता है।
इमली के बीज 50 ग्राम छील लें और भूनकर चूर्ण बना लें। 6 ग्राम चूर्ण दही में मिलाकर रोज खायें।
58. जिगर की खराबी : 20 ग्राम इमली के बीज को 250 मिलीलीटर पानी के साथ रात को भिगो दें, सुबह मसल-छानकर चीनी मिला लें, 3-4 दिन रोजाना इसे पीने से जिगर को आराम मिलता है।
59. घाव: जलने से होने वाले घाव पर अगर इमली की छाल के पाउडर को घी में मिलाकर लगायें तो लाभ होता है।
60. प्रदर रोग:
125 ग्राम इमली के बीज 3 दिन तक पानी में भिगोकर छिलका उतार लें, फिर इसे छाया में सुखाकर कूट-छानकर इसे 100 ग्राम चीनी में मिलाकर 1-1 चम्मच कच्चे दूध या पानी से सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर में आराम मिलता है।
इमली को रात-भर पानी में भिगोकर सुबह इसे पानी से निकालकर इनके छिलके सुखा लें। फिर पीसकर चूर्ण बना लें। इसे रोजाना सुबह-शाम 5-5 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
इमली के बीजों को निकालकर चूर्ण बना लें। इसे मिश्री के साथ रोजाना सेवन करने से प्रदर और प्रमेह मिट जाता है।
61. प्यास अधिक लगना:
इमली के पानी से कुल्ला करने से गले की खुश्की व प्यास शांत हो जाती है।
इमली के बीज को छीलकर चूसने से बार-बार लगने वाली प्यास बुझ जाती है।
62. लू का लगना:
इमली और पानी के लेप को हाथों और पैरों पर लगाने से जलन और सिर पर लगाने से बेहोशी दूर हो जाती है।
इमली को पानी में उबाल लें और इस पानी को छानकर 100 ग्राम की मात्रा में शर्बत की तरह लेने से लू से बचा जा सकता है। इमली के उबले हुए पानी में कपड़े को भिगोकर रोगी के ऊपर छींटे मारने से भी लू ठीक हो जाती है।
इसके फल के गूदे को ठण्डे पानी में पीसकर, मुण्डे हुए (गंजे) सिर पर लगाने से लू का असर और मूर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
पकी हुई इमली को पानी में मसलकर उस पानी में कपड़ा भिगोकर शरीर को कुछ देर तक पोंछने-फेरने से लू का असर मिटता है।
63. जलोदर: इमली के बीजों को पीसकर लेप करने से जलोदर में लाभ होता है।
65. पित्त की पथरी: इमली का रस 240 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम सुबह-शाम यवाक्षार से घुले ताजे पानी के साथ खाने से पथरी खत्म हो जाती है। यह अजीर्ण और पेशाब की परेशानी को भी दूर करता है।
66. धातु रोग:
इमली के बीज 300 ग्राम को 500 मिलीलीटर पानी में 3 दिन तक भिगोयें। फिर इसका छिलका उतारकर छाया में सुखा लें, इसके बाद इसे पीसकर 10-10 ग्राम सुबह-शाम कम गर्म दूध से लें। इससे धातु विकार दूर हो जाते हैं।
इमली के बीजों के छोटे-छोटे टुकड़े करके रातभर पानी में भिगो कर खाने से वीर्य पुष्ट (मजबूत) होता है।
67. मुर्च्छा (बेहोशी): इमली के गूदे को ठण्डे पानी में पीसकर गंजे सिर पर लगाने से बेहोशी के साथ साथ लू का असर भी दूर हो जाता है।
68. योनि का संकोचन : इमली के बीजों की गिरी (गुठली) को पीसकर सुबह और शाम को योनि पर लगाने या मालिश करने से योनि सिकुड़कर तंग हो जाती है।
69. चक्कर आना : लगभग 25 ग्राम बिना बीज की इमली को 125 ग्राम पानी में भिगों दें। एक घंटे तक भिगोने के बाद मसल-छानकर इसमें चीनी मिलाकर सुबह और शाम को पिलाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं।
70. फोड़ों का घाव, दर्द और
सूजन: फोड़े के घाव पर इमली के पत्तों को पीसकर बांधने से दर्द और सूजन दोनों दूर हो जाते हैं।
71. हाथ-पैरों की ऐंठन: इमली को नींबू के रस में मसलकर चाटने से हैजा की सूजन मिट जाती है।
72. हृदय रोग: पकी हुई इमली का घोल 2 चम्मच और थोड़ी-सी मिश्री, दोनों को मिलाकर सेवन करें।
73. नासूर:
आग से जल जाने के कारण जख्म बन जाने पर इमली का चूर्ण घी के साथ मिलाकर लगाने से आराम मिलता है।
इमली के बीज पानी में भिगोकर छिलके निकाल दें, अन्दर की गिरी पीसकर रूई की बत्ती बनाकर नासूर पर रखें। इससे नासूर ठीक हो जाता है।
74. विसर्प-फुंसियों का दल बनना: शरीर में फुंसिया होने पर इमली को पानी में मिलाकर और छानकर रोजाना पीने से लाभ होता है।
75. मानसिक उन्माद (पागलपन): 20 ग्राम इमली को जल के साथ पीस-छानकर पागलपन के रोगी को पिलाने से पागलपन या उन्माद दूर हो जाता है।
76. नाड़ी की जलन: भिलावा, इमली की पत्ती, लहसुन व बायविडंग को एक साथ पीस लें। इसे नारियल के पानी और मिश्री के चूर्ण के बने हुए घोल में मिला दें। यह घोल प्रतिदिन एक बार लेने से नाड़ी की जलन व सूजन दूर होती है।
77. गले का दर्द : इमली के पानी से कुल्ला करने से गले का दर्द दूर हो जाता है।
78. शरीर को शक्तिशाली बनाना: इमली के बीजों को लेकर इनको पानी में भिगोकर रख दें। इन बीजों को 3 दिन तक पानी में भीगने दें। 3 दिन के बाद इन छिलकों को पानी में से निकालकर इनका छिलका उतारें और इसमें इमली के बीजों के जितना ही गुड़ मिलायें। अब इन दोनों को मिलाकर लगभग 6-6 ग्राम की गोलियां बना लें। सुबह-शाम 1-1 गोली का सेवन करने से शरीर शक्तिशाली बन जाता है और सभी प्रकार के रोग दूर रहते हैं।
79. गला बैठना: 1 ग्राम पुरानी इमली के फल का चूर्ण 4 से 6 ग्राम शहद के साथ दिन मे 2 बार लेना चाहिए।

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