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ईसबगोल से 50 प्रकार के रोगों का ईलाज (50 TYPES USE OF SPOGEL SEEDS)

ईसबगोल से 50 प्रकार के रोगों का ईलाज
(50 TYPES USE OF SPOGEL SEEDS)

परिचय :
ईसबगोल की व्यवसायिक रूप से खेती उत्तरी गुजरात के मेहसाना और बनासकाठा जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र, पंजाब, हरियाणा प्रदेशों में भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहित, मौसमी, झाड़ीनुमा होता है। ईसबगोल की ऊंचाई लगभग 10 से 30 सेमी होती है। ईसबगोल के पत्ते 9 से 27 सेमी तक लम्बे होते हैं। इसका फूल गेहूं की बालियों के समान होता है। जिस पर ये छोटे-2, लम्बे, गोल, अण्डाकार मंजरियों में से निकलते हैं। फूलों में नाव के आकार के बीज लगते हैं। बीजों से लगभग 26-27 प्रतिशत भूसी निकलती है। भूसी पानी के संपर्क में आते ही चिकना लुबाव बना लेती है जो बिना स्वाद और गंध का होता है। औषधि रूप में ईसबगोल बीज और उसकी भूसी का उपयोग करते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिन्दी ईसबगोल
संस्कृत ईषढ़गोल
मराठी ईसबगोल
गुजराती उथमुजीरू
बंगाली इसपूबगल
अंग्रेजी स्पोगल
लैटिन प्लैण्टेगो
रंग : ईसबगोल का रंग लाल सफेदी लिए हुए होता है।
स्वाद : इसका स्वाद तीखा और कड़वा होता है।
स्वभाव : ईसबगोल का स्वभाव शीतल होता है।
हानिकारक : इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से भूख कम लगती है।
सावधानी : ईसबगोल का अधिक मात्रा में सेवन करने से कब्ज का रोग हो जाता है। जठराग्नि का मंद (भोजन पचाने की क्रिया का कम होना) होना भी सम्भव है। इसके सेवन के समय प्रचुर मात्रा में पेय पदार्थों का सेवन करें। गर्भवती औरतों को इसका सेवन सावधानी से करना चाहिए। ईसबगोल के बीजों या भूसी को 1 कप पानी में घोलकर इसे खूब हिलाकर पीना चाहिए। बीजों और भूसी को एक कप पानी में डालकर लगभग 2 घंटे तक भिगों दें, जब पूरा लुवाब बन जाए तब इसे चीनी या मिश्री
मिलाकर खाने से लाभ होता है।
दोषों को दूर करने वाला : शहद
ईसबगोल के गुणों को सुरक्षित रखता है एवं इसमें व्याप्त दोषों को दूर करता है।
तुलना : इसकी तुलना विहीदाना से की जा सकती है।
मात्रा : ईसबगोल की मात्रा 6 ग्राम से लेकर 9 ग्राम तक दिन में 2 बार ज्यादा से ज्यादा 20 ग्राम तक लेना चाहिए।
गुण : ईसबगोल गर्मी , प्यास, गर्मी के बुखार, कण्ठ (गला), हृदय (दिल) और जीभ की खरखराहट तथा खून के रोगों को दूर करता है। यह आंतों के घाव, आंव और मरोड़ में लाभदायक होता है। ईसबगोल को भूनकर खाने से यह मल को रोकता है। ईसबगोल के लुबाब से कुल्ले करने से मुंह के दाने को दूर करते हैं। ईसबगोल को पीसकर लेप करने से यह गर्मी से हुई सूजन को दूर करता है। परन्तु कूट देने से यह विषाक्त हो जाता है। यह बहुत ही पुष्टकारक होता है। यह कुछ रक्त-कारक और पित्त -नाशक होता है।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. आमातिसार, रक्तातिसार (खूनी दस्त): ईसबगोल को दही के साथ सेवन करने से ऑंवयुक्त दस्त और खूनी दस्त के रोग में लाभ मिलता है।
2. अमीबिका (पेचिश): 100 ग्राम ईसबगोल की भूसी में 50-50 ग्राम सौंफ और मिश्री को 2-2 चम्मच की मात्रा में रोजाना 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
3. कांच खाने पर: ईसबगोल की भूसी 2 चम्मच की मात्रा में दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ होता है।
4. जोड़ों का दर्द : ईसबगोल की पुल्टिश (पोटली) पीड़ित स्थान पर बांधने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
5. पायरिया: ईसबगोल को सिरके में मिलाकर दांतों पर मालिश करने से पायरिया के रोग में लाभ मिलता है।
6. स्वप्नदोष : ईसबगोल और मिश्री मिलाकर एक-एक चम्मच एक कप दूध के साथ सोने से 1 घंटा पहले लें और सोने से पहले पेशाब करके सोयें।
7. आंव: 1 चाय की चम्मच ईसबगोल गर्म दूध में फुलाकर रात्रि को सेवन करें। प्रात: दही में भिगोकर, फुलाकर उसमें सोंठ, जीरा मिलाकर 4 दिन तक लगातार सेवन करने से आंव निकलना बंद हो जाएगा।
8. पुरानी कब्ज, आंव, आंतों की सूजन : पुरानी आंव या आंतों की सूजन में 100-100 ग्राम बेल का गूदा, सौंफ, ईसबगोल की भूसी और छोटी इलायची को एक साथ पीसकर पाउडर बना लेते हैं। अब इसमें 300 ग्राम देशी खांड या बूरा मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रख देते हैं। इस चूर्ण की 2 चम्मच मात्रा सुबह नाश्ता करने के पहले ताजे पानी के साथ लेते हैं और 2 चम्मच शाम को खाना खाने के बाद गुनगुने पानी या गर्म दूध के साथ 7 दिनों तक सेवन करने से लाभ मिल जाता है। लगभग 45 दिन तक यह प्रयोग करने के बाद बंद कर देते हैं। इससे कब्ज, पुरानी आंव और आंतों की सूजन के रोग दूर हो जाते हैं।
9. आंव (पेचिश, संग्रहणी): ईसबगोल 3 भाग, हरड़ और बेल का सूखा गूदा बराबर मात्रा में मिलाकर तीनों को बारीक पीसकर 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
10. कांच या कंकड़ खा लेने पर:
यदि खाने के साथ कांच या कंकड़ पेट में चला जाए तो 2 चम्मच की ईसबगोल की भूसी गरम दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
ईसबगोल की भूसी को 2 से 3 चम्मच की मात्रा में 1 गिलास ठण्डे पानी में भिगोकर मीठा (बूरा) मिलाकर खायें।
11. श्वास या दमा:
1 वर्ष या 6 महीने तक लगातार रोजाना सुबह-शाम 2 चम्मच ईसबगोल की भूसी गर्म पानी से सेवन करते रहने से सभी प्रकार के श्वांस (सांस) रोग दूर हो जाते हैं। 6 महीने से लेकर 2 साल तक सेवन करते रहने से 20 से 22 साल तक का पुराना दमा रोग भी इस प्रयोग से चला जाता है।
1-1 चम्मच ईसबगोल की भूसी को दूध के साथ लगातार सुबह और शाम कुछ महीनों तक सेवन करने से दमा के रोग में लाभ मिलता है।
12. शीघ्रपतन: ईसबगोल, खसखस और मिश्री सभी की 5-5 ग्राम मात्रा को पानी में मिलाकर सेवन करने से शीघ्रपतन (धातु का जल्दी निकल जाना) का रोग दूर हो जाता है।
13. पेशाब की जलन: 1 गिलास पानी में 3 चम्मच ईसबगोल की भूसी को भिगोकर उसमें स्वाद के मुताबिक बूरा (खांड या चीनी) डालकर पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है।
14. श्वेतप्रदर: ईसबगोल को दूध में देर तक उबालकर, उसमें मिश्री मिलाकर खाने से स्त्रियों के श्वेत प्रदर में बहुत लाभ मिलता है।
15. सिर दर्द : ईसबगोल को बादाम के तेल में मिलाकर मस्तक पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता है।
16. कान का दर्द: ईसबगोल के लुवाब में प्याज का रस मिलाकर, हल्का सा गर्म करके कान में बूंद-बूंद करके डालने से कान के दर्द में लाभ मिलता है।
17. मुंह के छाले:
ईसबगोल को पानी में डालकर रख दें। लगभग 2 घंटे के बाद उस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
3 ग्राम ईसबगोल की भूसी को मिश्री में मिलाकर हल्के गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे मुंह के छाले और दाने ठीक हो जाते हैं।
ईसबगोल से कब्ज व छाले नष्ट होते हैं। ईसबगोल को गर्म पानी में घोलकर दिन में 2 बार कुल्ला करने से मुंह के छालों में आराम होगा।
18. खून बहना: ईसबगोल के पत्तों का रस निकालकर पीने से खून का बहना तुरन्त बंद हो जाता है।
19. पेट की जलन: 200 ग्राम ईसबगोल को 100 मिलीलीटर पानी में डालकर रख देते हैं। सुबह इस मिश्रण को मसलकर, छानकर और इसमें मिश्री मिलाकर पीने से दिमाग की गर्मी, खून का बहना और पेट की जलन नष्ट हो जाती है।
20. कब्ज:
ईसबगोल भूसी के रूप में काम में आता है। यह कब्ज को दूर करती है। ईसबगोल के रेशे आंतों में पचते नहीं हैं तथा तरल पदार्थ सूखकर फूल जाते हैं और मल की निकासी शीघ्र करते हैं। तीन चम्मच ईसबगोल गर्म पानी या गर्म दूध से रात को सेवन करने से कब्ज में लाभ मिलता है।
ईसबगोल को जल में घोलकर उसका लुबाव बनाकर उसमें बादाम का तेल मिलाकर पीने से बहुत लाभ मिलता है। इससे कोष्ठबद्धता (कब्ज) दूर होकर पेट का दर्द भी नष्ट हो जाता है।
ईसबगोल 2 चम्मच, हरड़ 2 चम्मच, बेल का गूदा 3 चम्मच आदि को पीसकर चटनी बना लें। सुबह और शाम इसमें से एक-एक चम्मच गर्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
ईसबगोल की भूसी को दूध के साथ रात के सोने से पहले लेने से सुबह शौच खुलकर आती है।
ईसबगोल की मात्रा 6 ग्राम, को 250 मिलीलीटर गुनगुने दूध के साथ सोने से पहले पी लें। कभी-कभी ईसबगोल की भूसी लेने से पेट फूल जाता है। ऐसा बड़ी आंतों में ईसबगोल पर बैक्टीरिया के प्रभाव से पैदा होने वाली गैस से होता है। इसलिए ध्यान रखें कि ईसबगोल की मात्रा कम से कम ही लें। ईसबगोल के प्रयोग से आंतों की कार्यशीलता बढ़ जाती है, जिससे मल ठीक से बाहर निकल आता है और कब्ज दूर हो जाती है। ईसबगोल लेने के बाद दो-तीन बार पानी पीना चाहिए। इससे ईसबगोल अच्छी तरह फूल जाता है।
त्रिफला (हरड़, बहेड़ा तथा आंवला) का दो चम्मच चूर्ण प्रतिदिन रात में सोते समय गर्म दूध या गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर हो जाती है।
गर्मी के दिनों में सुबह-शाम 3-3 चम्मच ईसबगोल की भूसी को मिश्री के मिले हुए जल में कुछ दिनों तक भिगोकर सेवन करने से कब्ज दूर हो जाता है।
21. कोलेस्ट्राल: ईसबगोल के नियमित सेवन करने से कोलेस्ट्राल नियंत्रित होता है।
22. मोटापा दूर करना: ईसबगोल रेशे का अच्छा स्रोत होने के कारण मोटापे को भी कम करती है। जब यह पेट में पहुंचती है तो जल का अवशोषण (चूसते) करते हुए पेट को भर देती है। जिससे व्यक्ति को भूख नहीं लगने का अहसास होता रहता है। एक अनुसंधान के अनुसार भोजन के 3 घंटे पहले जिन महिलाओं ने ईसबगोल का सेवन किया, उनके शरीर ने आहार से वसा का अवशोषण कम किया। ईसबगोल आंतों से मल को बाहर निकाल देती है। इसके फलस्वरूप संक्रमण होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
23. पेशाब सम्बंधी रोग:
जब मूत्र (पेशाब) बंद हो जाए या मूत्राशय (पेशाब की जगह में जलन) में जलन होती हो तो 4 चम्मच भूसी को 1 गिलास पानी में भिगो दें और थोड़ी देर बाद उसमें स्वाद के अनुसार मिश्री मिलाकर पीयें। इससे मूत्रकृच्छ (पेशाब करने की जगह में दर्द और जलन) दूर हो जाता है।
शीतल मिर्च 2 ग्राम और कलमी शीरे 500 मिलीग्राम को एक साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने की जगह में दर्द और जलन) में लाभ मिलता है।
24. दांतों का दर्द: ईसबगोल को रूई में भिगोकर दर्द वाले दांतों के नीचे रखने से दांत में हो रहे तेज दर्द जल्द ठीक होते हैं।
25. नपुंसकता (नामर्दी):
ईसबगोल की भूसी 5 ग्राम और मिश्री 5 ग्राम दोनों को रोज सुबह के समय खाये और ऊपर से दूध पी लें। इससे शीघ्रपतन की विकृति खत्म होती है।
ईसबगोल की भूसी और बड़े गोखरू का चूर्ण 20-20 ग्राम तथा छोटी इलायची के बीजों का चूर्ण 5 ग्राम। इन सबका चूर्ण बनाकर रोज दो चम्मच गाय के दूध के साथ लें।
26. अंडकोष की जलन : ईसबगोल का गाढ़ा सा रस निकालकर अंडकोष के दर्द वाले जगह लेपकर ऊपर से कागज चिपका दें। इससे अंडकोष की जलन मिट जाती है।
27. श्वास या दमे का रोग:
लगभग 3-4 महीने लगातार प्रतिदिन सुबह और शाम ईसबगोल की भूसी का सेवन करने से सभी प्रकार का श्वास रोग नष्ट हो जाता है।
ईसबगोल साबुत लें। ईसबगोल का सत या भूसी नहीं लेना है। इसका कचरा मिट्टी हटाकर साफ करके ही सेवन करें। सुबह-शाम 10-10 ग्राम ईसबगोल पानी के साथ निगल जाएं। 1 महीने में ही दमा नष्ट हो जाता है।
ध्यान रहे कि चावल, तले पदार्थ, गुड़ तेल, खटाई, बादी वाले पदार्थों को बंद रखते हैं और ठीक हो जाने के बाद भी कम से कम 6 महीने तक परहेज जारी रखना चाहिए।
28. बुखार: 1 से 2 चम्मच ईसबगोल की भूसी कुछ घण्टे पानी में भिगोकर सुबह और शाम पीने से लाभ होता है। ध्यान रहे इसका अधिक सेवन करना अच्छा नहीं होता है क्योंकि यह आंतों में हलचल पैदा कर देता है।
29. खांसी: 1 से 2 चम्मच ईसबगोल की भूसी सुबह भिगोया हुआ शाम को और शाम को भिगोया हुआ सुबह सेवन करने से सूखी खांसी में पूरा लाभ मिलता है।
30. गैस्ट्रिक अल्सर : ईसबगोल की भूसी 5 से 6 ग्राम तक को गर्म दूध में डालकर पीने से अधिक कब्ज के कारण होने वाली गैस्ट्रिक अल्सर में आराम होता है।
31. आंव (एक प्रकार का सफेद चिकना पदार्थ जो मल के द्वारा बाहर निकलता हैं) अतिसार:
1 चम्मच ईसबगोल को गर्म दूध के साथ रात को सोने से सेवन करने से लाभ मिलता है।
ईसबगोल को दही में भिगोकर, नमक, सोंठ और जीरा मिलाकर 4 दिनों तक लगातार प्रयोग करने से पेट की आंव आना रुक जाती है।
150 ईसबगोल, हरड़ 50 ग्राम और सूखी बेल के गूदे को मिलाकर अच्छी तरह से पीसकर रख लें। इस बने चूर्ण को 2 चम्मच की मात्रा में गर्म दूध के साथ सेवन करने से आंव आना बंद हो जाते हैं।
32. दस्त:
ईसबगोल की भूसी को 1 से 2 चम्मच की मात्रा में लेकर रात को सोने से पहले पानी में डालकर भिगों दें, सुबह और शाम मिश्री को डालकर मीठी शर्बत बनाकर पीने से आंतों की सफाई हो जाती है। ध्यान रहे कि बिना भिगोये ईसबगोल की भूसी को प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि आंतें सिकुड़ने लगती हैं।
4 ग्राम ईसबगोल को 20 मिलीलीटर पानी में भिगोकर, उसमें थोड़ी-सी मिश्री डालकर खाना खाने के बीच में सेवन करने से गर्भवती स्त्री के दस्त की बीमारी समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे कि रोगी को खाने में 2 दिन तक कोई ठोस चीज नहीं दें, यदि कुछ देना है तो छाछ 1 दिन में 2-3 बार दें या चावल और दही, छिलके वाली मूंग की दाल व चावल की खिचड़ी ले सकते हैं।
खाना खाने के बाद 100 मिलीलीटर छाछ में भुना हुआ जीरा 1 ग्राम और काला नमक आधा ग्राम मिलाकर पिलाने से दस्त का आना मिट जाता है।
दही में भुना हुआ जीरा और सौंफ को पीसकर खाने से पेट की पाचन-क्रिया ठीक हो जाती है।
ईसबगोल की भूसी को 2 चम्मच की मात्रा में सुबह और शाम मीठी दही के साथ खाने से लाभ मिलता है।
ईसबगोल की भूसी को छाछ या दही के साथ खाने से लूज मोशम यानी ट्टटी का लगना रुक जाता है।
33. संग्रहणी : 40 ग्राम ईसबगोल, सौंफ आधी भुनी हुई, 10 ग्राम आधी कच्ची, 2 से 5 ग्राम तक बराबर मिश्री मिलाकर जल के साथ सेवन करन से रोगी को लाभ मिलता है।
34. बवासीर (अर्श):
ईसबगोल की भूसी को गर्म पानी या गर्म दूध के साथ रात को सोते समय पीने से सभी प्रकार की बवासीर दूर होती है।
ईसबगोल की भूसी को गर्म दूध में मिलाकर रात को सोते समय पीयें। इससे कब्ज ठीक होता है और बवासीर में आराम मिलता है।
ईसबगोल को ठण्डे पानी में भिगोकर उसका शर्बत बनाकर छान लें। इसको पीने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) में लाभ होता है।
35. खूनी अतिसार: ईसबगोल की भूसी के साथ पोस्ता का चूर्ण 1 से 2 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से रक्ततिसार के रोगी की बीमारी समाप्त हो जाती है।
36. कनफेड (कान की सूजन): 10 ग्राम ईसबगोल को पानी में डालकर 15 मिनट तक रख दें। इसके बाद इसको कनफेड पर लगाने से आराम आता है।
37. दस्त के साथ ऑव और खून का आना (पेचिश):
10-10 ग्राम ईसबगोल और मिश्री का चूर्ण प्रतिदिन 1 से 2 बार पानी के साथ लेने से ऑव रक्त (पेचिश) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
6 ग्राम ईसबगोल, 20 ग्राम एरंड का तेल दोनों को 100 मिलीलीटर गाय के दूध के साथ सेवन करने से ऑवरक्त (पेचिश) के रोगी को आराम पहुंचता है।
5 ग्राम ईसबगोल को रात में पानी में रख दें। सुबह को उस पानी को पीने से ऑव रक्त (पेचिश) की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
पेचिश के रोगी को दही के साथ मिश्री या छाल के साथ ईसबगोल लने से ऑव रक्त (पेचिश) में लाभकारी होता है।
पेचिश के रोग को दूर करने के लिये 100 ग्राम ईसाबगोल और 25 ग्राम सौंफ लेकर अच्छी तरह से पीस लें। इसको 2 चम्मच की मात्रा में भोजन के बाद दिन रात में लें।
6 ग्राम ईसबगोल, 20 ग्राम एरण्ड का तेल, दोनों को 100 मिलीलीटर गाय के दूध के साथ सेवन करने से रोगी के पेचिश की बीमारी दूर हो जाती है।
6 ग्राम ईसबगोल दही या लस्सी के साथ खाने से पेचिश के रोगी को लाभ होता है।
38. प्रदर रोग: ईसबगोल और सफेद मूसली को शर्बत के साथ लेने से प्रदर में लाभ होता है।
39. शीशा खा लेने पर : दस ग्राम ईसबगोल की भूसी को गुनगुने दूध के साथ लें।
40. मूत्ररोग: 2-3 चम्मच ईसबगोल की भूसी को एक गिलास पानी में भिगो दें। फिर उसमें शक्कर डालकर पी जायें।
41. नाभि रोग (नाभि का पकना): ईसबगोल को पानी में अच्छी तरह घिसने के बाद उसका लेप बच्चे के नाभि पर करने से लाभ मिलता है और नाभि में धाव नहीं बनता है।


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