loading...
loading...

नपुंसकता के लक्षण और उपाय(What is Impotency)

नपुंसकता (Impotency)

परिचय:-

इस रोग से पीड़ित पुरुष संभोग क्रिया ठीक प्रकार से नहीं कर पाता है तथा वह जल्द ही सैक्स के प्रति ठंडा हो जाता है। नपुसंकता रोग का सम्बंध ज्ञानेन्द्रियों से होता है। नपुसंकता रोग से पीड़ित व्यक्ति अपनी इस समस्या को किसी दूसरे व्यक्ति को बताने में संकोच करता है तथा वह इसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं बता पाता है जिसके कारण उसका यह रोग और बढ़ता चला जाता है। नंपुसकता अधिक उम्र वाले व्यक्तियों में अधिक पाई जाती है। ऐसे व्यक्ति स्त्री की परछाई से भी घबराने लगते हैं तथा वे स्त्रियों के पास जाने से कतराने लगते हैं।

नंपुसकता रोग दो प्रकार की होती है-

पूर्ण रूप से नपुसंकताआंशिक नपुसंकता

पूर्ण रूप से नपुसंकता-

          इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति का लिंग उत्तेजित नहीं होता है जिसके कारण वह सैक्स क्रिया बिल्कुल भी नहीं कर पाता है।

आंशिक नामर्दी:-

          जब यह रोग होता है तो पुरुष का लिंग संभोग क्रिया करने के लिए उत्तेजित होता है लेकिन संभोग शुरू करते ही उसकी उत्तेजना खत्म हो जाती है और लिंग शिथिल हो जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति संभोग क्रिया का मजा नहीं ले पाता है।

         इस रोग से पीड़ित व्यक्ति जब अपनी पत्नी के साथ संभोग करता है तो वह अपनी पत्नी को पूरी संतुष्टि नहीं दे पाता और रोगी की पत्नी को पता चल ही जाता है कि वह नंपुसकता रोग से पीड़ित है। कई बार तो इस रोग के कारण पति-पत्नी के बीच में लड़ाई-झगड़े होते हैं और कई तरह के पारिवारिक मनमुटाव हो जाते हैं। बात यहां तक भी बढ़ जाती है कि आखिरी में वे एक दूसरे से अलग-अलग रहने लगते हैं।

         बहुत से व्यक्ति शारीरिक रूप से नपुंसक नहीं होते लेकिन कुछ व्यक्ति प्रचलित अंधविश्वासों के चक्कर में पड़कर, सेक्स का शिकार होकर मानसिक रूप से नपुंसक हो जाते हैं। मानसिक नपुंसकता के कारण रोगी अपनी पत्नी के पास जाने से डरने लगता है। जिसके कारण वह व्यक्ति सहवास भी नहीं कर पाता और उस व्यक्ति की मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है और रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

नपुंसकता के लक्षण-

इस रोग से पीड़ित रोगी के लिंग में कठोरता नहीं होती है या संभोग क्रिया के समय में लिंग में कठोरता आ भी जाती है तो संभोग के समय लिंग की कठोरता खत्म हो जाती है।इस रोग से पीड़ित रोगी में संभोग क्रिया करने की शक्ति नहीं होती है।नंपुसकता से पीड़ित रोगी का लिंग छोटा हो जाता है जो संभोग क्रिया के काबिल नहीं होता है। रोगी के अण्डकोषों का अस्वाभाविक रूप से छोटा होना या बिल्कुल ही न होना आदि समस्याएं भी रोगी व्यक्ति को हो जाती हैं।इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति के शरीर के अन्दर दूषित द्रव्य जमा हो जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।इस रोग से पीड़ित रोगी का स्नायुजाल कमजोर तथा प्रजनन अंग कमजोर हो जाता है।

नपुंसकता होने के कारण-

यह रोग शरीर में बहुत अधिक कमजोरी हो जाने के कारण हो जाता है। शरीर में कमजोरी होने के कारण रोगी व्यक्ति में सैक्स की उत्तेजना खत्म हो जाती है जिसके कारण उसे यह रोग हो जाता है।शरीर के अन्दर दूषित द्रव्य जमा हो जाने के कारण व्यक्ति का लिंग छोटा हो जाता है तथा उसकी उत्तेजना खत्म हो जाती है जिसके कारण यह रोग हो जाता है।अत्यधिक संभोग करने तथा बहुत दिनों तक संभोग न करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।बहुत अधिक साईकिल चलाने के कारण भी नपुंसकता का रोग हो सकता है।जो व्यक्ति सेक्स के बारे में अधिक सोचता है तथा अनुचित ढंग से सेक्स क्रिया करता है उसे यह रोग हो जाता है।हस्तमैथुन तथा गुदामैथुन के कारण रोगी की संभोग क्रिया करने की शक्ति कम हो जाती है या बिल्कुल समाप्त हो जाती है और उसे नपुसंकता रोग हो जाता है।यह रोग व्यक्ति में चिंता और तनाव ज्यादा रहने से भी हो सकता है। ज्यादा मेहनत करने वाले व्यक्ति को जब पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता तो वह शारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है जिसके कारण व्यक्ति को नपुंसकता रोग हो जाता है।नपुंसकता रोग कई बार मधुमेह या अवसाद रोग के कारण भी हो सकता है।कुछ व्यक्तियों को यह रोग कई प्रकार की सेक्स की दवाइयों का सेवन करने के कारण भी हो सकता है।कई बार तो यह रोग अधिक शराब का सेवन करने के कारण भी हो सकता है।

नंपुसकता होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

नंपुसकता को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को सेक्स के प्रति गलत भावना तथा गलत आदतों को छोड़ना चाहिए। फिर इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।नंपुसकता के रोगी को प्रतिदिन अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए ताकि पेशाब अधिक आये और शरीर का दूषित द्रव्य बाहर निकल सके।यदि नपुंसकता के रोगी व्यक्ति को कब्ज की शिकायत है तो उसे एनिमा क्रिया करके पेट को साफ करना चाहिए और फिर इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करना चाहिए।नंपुसकता से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त तेल की लिंग पर मालिश करनी चाहिए तथा 24 घण्टे में 2 बार ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद अपने मेरूदण्ड (रीढ़ की हड्डी) पर पानी की धार गिरानी चाहिए। रोगी व्यक्ति को कम से कम दो सप्ताह के बाद एक दिन पूरे शरीर पर भीगी हुई चादर लपेटनी चाहिए। सुबह के समय में प्रतिदिन कटिस्नान और शाम के समय में मेहनस्नान करना चाहिए। रात को सोते समय कमर पर गीली पट्टी करनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप नंपुसकता रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।रोगी व्यक्ति को सुबह के समय में प्रतिदिन कटिस्नान और शाम को मेहनस्नान कराना चाहिए तथा रात को सोते समय कमर पर गीली पट्टी बांधनी चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।नंपुसकता रोग को ठीक करने के लिए आसमानी रंग की बोतल का 200 मिलीलीटर सूर्यतप्त जल तथा गहरे नीले रंग की बोतल के 100 मिलीलीटर सूर्यतप्त जल को आपस में मिला लें। इसमें से 25 मिलीलीटर जल को रोजाना दिन में 8 बार पीने से कुछ ही दिनों में यह रोग ठीक हो जाता है।लाल रंग की बोतल के सूर्यतप्त तेल की मालिश लिंग और कमर पर प्रतिदिन करने तथा लाल रंग का प्रकाश प्रतिदिन आधे घंटे तक लिंग पर डालने से भी यह रोग ठीक हो जाता है।

Theme images by konradlew. Powered by Blogger.