पित्त विकार और हृदय रोग तथा खून की कमी का घरेलू ईलाज
फालसा
फालसे का विशाल पेड़ होता है। यह बगीचों में पाया जाता है। उत्तर भारत में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है। इसका फल पीपल के फल के बराबर होता है। इसको फालसा कहते हैं। यह मीठा होता है। गर्मी के दिनों में इसका शर्बत भी बनाकर पीते हैं।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. पित्त विकार और हृदय रोग:
पके फालसे के रस को पानी में मिलाकर, पिसी हुई सोंठ और शक्कर के साथ पिलाना चाहिए।
पके फालसे के रस को पानी, सौंफ और चीनी मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
2. लू का लगना:
शहतूत और फालसे का शर्बत पीने से लू से बचा जा सकता है।
फालसे के साथ सेंधानमक खाने से लू नहीं लगती है।
3. शीतपित्त: पित्त-विकार में पके फालसे के रस में पानी, सोंठ और चीनी मिलाकर पीना चाहिए।
4. मूत्ररोग: फालसा खाने व शर्बत पीने से भी मूत्र की जलन खत्म होती है।
5. गर्भ में मरे हुए बच्चे को निकालना: नाभि, बस्ति और योनि पर फालसे की जड़ का लेप करना चाहिए। इससे गर्भ में मरा हुआ बच्चा तुरन्त निकल जाता है।
6. शरीर की जलन:
अगर शरीर में जलन हो तो फालसे के फल या शर्बत को सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
पके हुए फालसे को शक्कर के साथ खाने से शरीर की गर्मी, भभका, जलन दूर होती है।
फालसे का शर्बत पीने से शरीर की जलन समाप्त हो जाती है।
20 ग्राम फालसों को शक्कर के साथ खाने से जलन मिट जाती है।
8. दूषितमल: फालसा शरीर के दूषित मल को बाहर निकालता है। मस्तिष्क की गर्मी और खुश्की को दूर करता है। हृदय, आमाशय और यकृत (जिगर) को बलवान बनाता है। यह कब्ज दूर करता है तथा मूत्र (पेशाब) की जलन, सूजाक और स्त्रियों के श्वेतप्रदर में लाभदायक है। आमाशय और छाती की गर्मी, बेचैनी में अच्छे पके हुए फालसे खाना लाभकारी होता है।
9. खून की कमी: खून की कमी होने पर फालसा खाना चाहिए। इसे खाने से खून बढ़ता है।
10. अरुचि: अरुचि में फालसा, सेंधानमक और कालीमिर्च खाना लाभकारी होता है।